डेस्क ।। अभी प्रयागराज में साधुं संतों का जमावड़ा लगा हुआ है। कुंभ 15 जनवरी से 4 मार्च तक चलेगा। 12 साल के अंतराल में कुंभ का आयोजन किया जाता है। क्या आपको पता है कि आखिर कुंभ का आयोजन 12 साल के अंतराल में ही क्यो किया जाता है। आईये कुंभ के इतिहास के बारे में जानते है।
बताया जाता है कि कुंभ का इतिहास 850 साल पुराना है। इसकी शुरूआत आदी शंकराचार्य ने की थी। कुछ कथाओं के अनुसार माना जाता है कि इसकी शुरुआत समुंद्र मंथन के आदिकाल से हुई थी। कुछ विद्वान गुप्त काल में कुंभ के सुव्यवस्थित होने की बात करते हैं, लेकिन प्रमाणित तथ्य सम्राट शिलादित्य हर्षवर्धन (617-647 ई।) के समय से प्राप्त होते हैं।
बाद में जगतगुरु शंकराचार्य और उनके शिष्य सुरेश्वराचार्य ने दसनामी संन्यासी अखाड़ों के लिए संगम तट पर स्नान की व्यवस्था की। कहते है कि समुंद्र मंथन के समय जब अमृत कलश मिलाता तो उसको लेकर सभी देवी देवताओं में खींचातानी हो गई। खींचातानी के चलते कलश में से अमृत की बुंद छलक कर जहांपर गिरी थी वहां पर कुंभ का आयोजन किया जाता है।
जब चंद्रमा, सुर्य, शनि, इंद्र इन चारों ग्रहों का मेल होता है तब कुंभ का आयोजन किया जाता है। इन चारों ने ही अमृत की रक्षा की थी। कहा जाता है कि गुरू एक राशि में लगभग एक वर्ष तक रहते हैं। इस तरह बारह राशि में भ्रमण करते हुए उन्हें 12 वर्ष का समय लगता है।
इस वजह से हर 12 साल बाद फिर उसी स्थान पर कुंभ का आयोजन होता है। इसलिए उस वर्ष पृथ्वी पर महाकुंभ का आयोजन होता है। महाकुंभ के लिए निर्धारित स्थान प्रयाग को माना गया है।