नई दिल्ली ।। हिंदुस्तान गरीबी से लड़ने की दिशा में पूरी प्रतिबद्धता के साथ कार्य कर रहा है, जिसका परिणाम भी दिखने लगा है। पिछले दशक में हिंदुस्तान ने करीब 27.1 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकाला। इस दौरान संपत्ति, रसोई ईंधन, स्वच्छता और पोषण को लेकर अभूतपूर्व सुधार देखा गया। हिंदुस्तान की इस उपलब्धि का जिक्र संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में किया गया है, जिसमें गरीबी का निर्धारण करने वाले कई पहलुओं का अध्ययन किया गया।
यूएन की ये रिपोर्ट में 101 देशों के अध्ययन पर आधारित है। इसमें कम आय वर्ग वाले 31 देशों, मध्यम आय वर्ग वाले 68 देशों और उच्च आय वर्ग वाले दो देशों को शामिल किया गया। अध्ययन 1.3 अरब लोगों पर किया गया। रिपोर्ट के मुताबिक, ये कई पहलुओं के आधार पर गरीबी के दलदल में फंसे थे। इसमें उनकी गरीबी का आकलन केवल आय के आधार पर नहीं, बल्कि खराब स्वास्थ्य, काम की खराब गुणवत्ता और हिंसा के खतरे को देखते हुए किया गया।
गरीबी में कमी को परखने के लिए लगभग 2 अरब आबादी के साथ 10 देशों को चुना गया, जिनमें हिंदुस्तान और पाकिस्तान भी शामिल है। इनमें 8 अन्य देश बांग्लादेश, कंबोडिया, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो, इथियोपिया, हैती, नाइजीरिया, पेरू और वियतनाम हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, इन देशों ने सतत विकास लक्ष्य-1 हासिल करने की दिशा में उल्लेखनीय प्रगति की, जिसका आशय गरीबी को सभी पहलुओं को हर जगह समाप्त करना है।
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम और ऑक्सफोर्ड पोवर्टी एंड ह्यूमन डेवलपमेंट इनीशिएटिव की तरफ से तैयार वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI) के मुताबिक, गरीबी से निपटने की दिशा में सबसे अधिक प्रगति दक्षिण एशिया में देखी गई। हिंदुस्तान में 2006 से 2016 के बीच 27.10 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले। हिंदुस्तान में भी सर्वाधिक सुधार झारखंड में देखा गया, जहां विभिन्न स्तरों पर गरीबी 2005-06 में 74.9 प्रतिशत से कम होकर 2015-16 में 46.5 प्रतिशत पर पहुंच गई।