लखनऊ।। सीएम योगी भले ही भ्रष्टाचर पर अंकुश लगाने का दावा कर रहे हों लेकिन हकीकत कुछ और ही है। ये मामला प्रदेश के जल निगम का है। ईमानदार माने जाने वाले योगी सरकार के कैबिनेट मंत्री सुरेश खन्ना की नाक के नीचे जल निगम के प्रबंध निदेशक का बड़ा खेल प्रकाश में आया है। जल निगम के चेयरमैन जी पटनायक और प्रबंध निदेशक राजेश मित्तल ने नियम-कानून को ताक पर रखकर 300 करोड़ रुपये की भारी रकम बिना किसी शासनादेश के विभागीय खर्चों में दिखाकर खेल कर दिया।
जानकारी के मुताबिक, ये रकम जल निगम की तरफ से यूपी सरकार के खजाने में जमा करायी जानी थी। सूत्रों से मिल रही जानकारी के मुताबिक 300 करोड़ की यह रकम जल निगम के खातों पर बैंक से ब्याज के रूप में मिले थे। नियमानुसार निगम के खातों पर मिलने वाला ब्याज उन खातों में वापस जाता है जहां से विकास कार्यों की धनराशि जारी की जाती है।
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यानी केन्द्र सरकार द्वारा करवाये जाने वाले विकास कार्यों के लिए आयी धनराशि पर मिलने वाला ब्याज केन्द्र सरकार के खाते में वापस जाता है और राज्य सरकार के खातों से आने वाली रकम का ब्याज राज्य सरकार के राजकोष को दिये जाने का प्राविधान है। योगी सरकार में जल निगम के चेयरमैन बने विभागीय मंत्री के करीबी जी. पटनायक और एमडी राजेश मित्तल ने ब्याज की इस रकम को विभागीय की पूंजी के रूप में प्रयोग करते हुये जल निगम और सीएंडडीएस के कर्मचारियों के महीनों के लंबित वेतन का भुगतान कर डाला।
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शेष भुगतान करने की भी तैयारी चल रही थी। यूपी जल निगम को जितने भी विकास कार्य का जिम्मा मिलता है। प्रत्येक की कुल लागत पर निगम सेंटेज के रूप में लगभग 12% कमीशन वसूल करता है। इसी सेंटेज से जल निगम अपने कर्मचारियों को वेतन और भत्तों का खर्च उठता रहा है।
बताया जा रहा है कि पिछली अखिलेश सरकार के कार्यकाल में तत्कालीन विभागीय मंत्री आजम खान और निगम के प्रबंधक निदेशक के बीच पैदा हुये मतभेदों के चलते निगम के सारे कार्य ठप पड़ गये थे। इसके कारण जल निगम की आमदनी शून्य हो गई थी।
इसी दौरान चुनाव आ गये और नई सरकार के सक्रिय होने तक विभाग के कर्मचारियों का कई महीने का वेतन लटक गया। जिसका हल निकालने के लिये नये चेयरमैन और एमडी ने नियमों को ताक पर रखकर खातों में जमा धन पर मिले ब्याज से अपने कर्मचारियों को वेतन और भत्ते बांट दिये।
अब सवाल उठता है कि उत्तर प्रदेश जल निगम में सरकार द्वारा कार्यों के मद में दी जा रही धनराशि पर विभिन्न बैंकों में जमा धनराशि से प्राप्त होने वाला ब्याज जो कि राजकोष में जमा किया जाना चाहिये था। वह किस शासनादेश के तहत कर्मचारियों का वेतन भत्ता दिये जाने के लिये प्रयोग किया गया।
300 करोड़ की धनराशि जो पिछले वर्षों में ब्याज के रुप में प्राप्त हुई थी को वेतन मद में व्यय कर दिया गया। यह धनराशि राजकोष में जमा कराई जानी थी इसका क्या इस फैसले के लिए शासकीय सहमति ली गई या नहीं।
यूपी जल निगम और CNDS को कितनी धनराशि ब्याज के रूप में मिली और कितनी धनराशि वेतन के रूप में खर्च की गई। इस धनराशि को राजकोष में क्यों नहीं जमा किया गया और इसे कब तक राजकोष में जमा किया जायेगा। ब्याज से विभाग के खातों में जमा की गई धनराशि को सरकार के किस आदेश की अनुमति के तहत वेतन में व्यय किया गया।
ये तमाम सवाल ऐसे हैं कि इनका किसी के पास जबाव नहीं है। इस संबंध में जब जल निगम के एमडी राजेश मित्तल से बात करने की कोशिश की गई लेकिन उनसे बात नहीं हो पाई।
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