चाह कर भी नहीं खरीद पाएंगे 1 किलो आलू, बदल गया किलो का वजन करने का पैमाना

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नेशनल डेस्क ।। अब किलो का मानक बदल गया है। फ्रांस में दुनिया के 60 वैज्ञानिकों ने 16 नवंबर को वैज्ञानिक किग्रा को वजन की ईकाई बनाए रखने या हटाने के लिए वोट दिया था। जिसमें उन्होंने किलोग्राम के मानक को रिटायर कर दिया है। यानी एक किलोग्राम का वजन अब बदल गया है। अब तक 1 किलो को पेरिस में रखे एक धातु के सिलिंडर के भार के बराबर माना जाता था। इससे जुड़ी सारी प्रक्रियाएं बहुत यूं हैं –

आप तो बांट से पता करते हैं कि एक किलो कितना होगा लेकिन जरा सोचिए कि पहली बार कैसे तय किया गया होगा कि इतने ही वजन को एक किग्रा कहा जाना चाहिए? और कैसे तौलने की इस ईकाई का दुनिया भर में प्रचार-प्रसार किया गया होगा? दरअसल एक किग्रा का वजन एक अंतरराष्ट्रीय प्रोटोकॉल का हिस्सा है। जिस पर सहमति 1889 में बनी थी।

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इसे इंटरनेशनल प्रोटोकॉल किलोग्राम कहा जाता है। इस प्रोटोकॉल को ‘ल ग्रैंड के’ भी कहा जाता है। इसी के तहत प्लेटिनम और इरीडियम मिक्स धातु का छोटा सिलिंडर पेरिस की संस्था ब्यूरो इंटरनेशनल दे पॉइड्स एत मीजर्स इन सेवरेस में रखा है। इसी सिलिंडर के वजन को 1 किग्रा माना जाता है। जिसे हर 30-40 साल में जांच के एक बहुत बड़े अभ्यास के लिए बाहर निकाला जाता है और दुनिया भर के बहुत से बांटों और मापों को इससे नापा जाता है।

फिलहाल वैज्ञानिक चाहते हैं कि पेरिस में रखे किसी मिश्रित धातु के सिलिंडर से नापने के बजाए किसी प्राकृतिक भार को नापने की ईकाई बना दिया जाए। और ये ईकाई है ‘प्लांक कॉन्सटैंट’। दशकों पहले, मीटर को भी ऐसे ही एक भौतिक ईकाई की बजाए उतना बना दिया गया है, जितना प्रकाश एक सेकेंड में ट्रेवेल करता है, उसका 30 करोड़वां भाग। तो अब वक्त किलो के बदले जाने का है।

भारत के पास भी इस ल ग्रांड के की एक आधिकारिक कॉपी है। जो नेशनल फिजिकल लैबोरेटरी, दिल्ली में रखा हुआ है। इसे नंबर, 57 कहा जाता है। यही भारत का सबसे सही नाप वाला किलो है। इसे कुछ दशकों बाद फिर से पेरिस माप के लिए भेजा जाता है। फिर भारत के बांटों को इस किलो से मापा जाता है।

ऐसा लगता है कि पेरिस में रखा यह किलो धीरे-धीरे सिकुड़ रहा है। कोई यह बात सही-सही नहीं कह सकता कि ऐसा धातु के धीरे-धीरे क्षरण के चलते हो रहा है या फिर दुनिया के दूसरे बांटों पर धीरे-धीरे और चीजें (धूल वगैरह) जमा हो रहीं हैं, जिसके चलते ऐसा हो रहा है।

कुछ दिन पहले बांट में 30 माइक्रोग्राम की बढ़त देखी गई थी। हालांकि यह ग्राहकों के लिए फायदे की ही बात थी। लेकिन दुनियाभर के विज्ञान के लिए यह चिंता का सबब बन गया था। क्योंकि दवाओं के मार्केट जैसे कई क्षेत्रों में इसके चलते बड़े बदलाव आ सकते थे। खासकर उनमें जिनमें कम वजन की बहुत अहमियत होती है।

वैज्ञानिक अब माप के तौर पर प्लांक कॉन्स्टैंट का प्रयोग करने वाले हैं। यह क्वांटम मैकेनिक्स की एक वैल्यू है। यह ऊर्जा के छोटे-छोटे पैकेट्स का भार होता है। इसकी मात्रा 6.626069934*10-34 जूल सेकेण्ड है। जिसमें सिर्फ 0.0000013% की ही गड़बड़ी हो सकती है। इससे एम्पियर, केल्विन और मोल जैसी ईकाईयों में भी बदलाव आ सकता है।

दरअसल कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा। सब्जी के ठेले पर सब्जीवाला आपको उसी काले लोहे के बाट से सब्जी तौलकर देगा। यह बस एक तौल को ज्यादा से ज्यादा सटीक बनाने का तरीका है, जिससे किसी भौतिक ईकाई से नापने की बजाए, नाप की ईकाई को प्राकृतिक बना दिया जाए।

फोटो- फाइल

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