
दीप जलाकर कार्यक्रम का शुभारंभ करते हुए प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री।
भारतीय लोकतंत्र पर जब-जब संकट आया है, तब-तब इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उच्च मानदण्डों की स्थापना करने के
साथ लोकतंत्र की रक्षा की है: मुख्यमंत्री
प्रधानमंत्री, राज्यपाल एवं मुख्यमंत्री ने इलाहाबाद में उच्च न्यायालय के 150 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में एक वर्ष तक चलने वाले समारोह के समापन दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में शिरकत की
लखनऊ ।। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि कानून का लक्ष्य अन्तिम छोर पर बैठे व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाना होना चाहिए। न्यायिक व्यवस्था ऐसी हो कि सबको न्याय आसानी से सुलभ हो। उन्होंने न्यायिक प्रक्रिया को और अधिक तर्कसंगत बनाने के साथ-साथ वादों के त्वरित निस्तारण पर भी बल दिया।
प्रधानमंत्री ने 2 अप्रैल को इलाहाबाद में उच्च न्यायालय के 150 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में एक वर्ष तक चलने वाले समारोह के समापन दिवस पर आयोजित कार्यक्रम को मुख्य अतिथि के रूप में सम्बोधित करते हुए यह विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि वर्ष 2022 में देश आजादी के 75 वर्ष पूरे करेगा। यहां से पूरा देश आजादी के 75 वर्ष पूरे होने पर वर्ष 2022 तक नये भारत के लिए एक ऐसा रोडमैप तैयार करे, जिसके तहत देश की तरक्की के साथ-साथ न्यायिक व्यवस्था को और अधिक प्रभावी बनाया जा सके।
मोदी ने देशवासियों का आह्वान करते हुए कहा कि हम सभी नये भारत का संकल्प लें और हर क्षेत्र में नयी उमंग व ऊर्जा से नव निर्माण में लग जाएं। उन्होंने कहा कि अपने सपनों को साकार करते हुए सभी देशवासी देश को एक नयी पहचान देने में मदद करें।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के गौरवशाली अतीत का विस्तार से चर्चा करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि आजादी के दौरान यहां के न्यायविदों और अधिवक्ताओं ने जिस भूमिका का निर्वहन करते हुए हमें आजादी दिलायी और आजादी के बाद भारतीय लोकतंत्र को जो मजबूती दी, उससे पूरा देश गौरवान्वित है। केन्द्र सरकार द्वारा न्यायिक व्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त बनाने का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि देश में लागू छोटे-बड़े लगभग 1200 कानूनों का अध्ययन कर उनका सरलीकरण किया गया है।
भारत के मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर ने अपने उद्बोधन में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की न्याय के क्षेत्र में उल्लेखनीय उपलब्धियों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इस उच्च न्यायालय ने भारत को 05 मुख्य न्यायाधीश दिए हैं। प्रधानमंत्री के नव भारत के संकल्प के साथ मन की बात की चर्चा करते हुए मुख्य न्यायाधीश ने न्यायालयों में बड़ी संख्या में लम्बित वादों पर अपने बात रखते हुए कहा कि यदि सर्वोच्च न्यायालय से लेकर उच्च न्यायालयों और अधीनस्थ न्यायालयों के न्यायमूर्तिगण कम से कम 5-10 दिन का समय निकालते हुए लम्बित मामलों को सूचीबद्ध कर निस्तारण की कार्य योजना बना लें, तो निश्चित रूप से अकेले सर्वोच्च न्यायालय के 80-85 जज अपनी इस छोटी से सैक्रिफाइस से लम्बित वादों के बोझ को कम कर सकते हैं।
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