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लखनऊ।। यूपी में शिक्षा मित्रों के समायोजन के मुद्दे पर मचे बवाल के बीच यूपी सरकार बैकफुट पर है। सुप्रीम कोर्ट में यूपी सरकार की पैरवी कर वरिष्ठ वकील पीएन मिश्रा ने बताया सुप्रीम कोर्ट में यूपी सरकार से रेगुलराइजेशन के मुद्दे पर लड़ती रही, लेकिन शुरु से ये मामला रिक्रूटमेंट का है।

शिक्षा मित्रों की पैरोकारी करने वाले सीनियर एडवोकेट पीएन मिश्रा ने जानकारी दी कि सरकार की गलती से शिक्षा मित्रों के हक में फैसला नहीं आया। अब तक के सबसे आसान केस में सरकार के वकीलों ने केस को उलझा दिया।। ये मामला रिक्रूटमेंट से जुड़ा था, जबकि सरकार शुरू से रेगुलराइजेशन के मुद्दे पर लड़ती रही। इससे पहले भी हाईकोर्ट में शिक्षा मित्रों के मुद्दे को ठीक से नहीं रखा गया। वहां भी इनके रेगुलराइजेशन रूल्स के आधार पर फैसला हुआ, जबकि ये मुद्दा उसी वक्त रिक्रूटमेंट का था।

शिक्षा मित्रों को टीचर रिक्रूटमेंट रूल्स में संशोधन करते हुए सरकार ने अप्वाइंटमेंट किया था, जबकि दूसरे बीएड वाले पक्ष का कहना था कि इन्हें रेगुलराइज नहीं किया जा सकता है। इसी मुद्दे पर पहले हाईकोर्ट इन्हें अवैध करार दिया, सुप्रीम कोर्ट ने उसे आगे बढ़ाया। इन्हें रिक्रूटमेंट में ही बदलाव करके उसे नियम बनाकर सुप्रीम कोर्ट में बताना चाहिए था। ये हमारे यहां संशोधित करके नियम बनाया गया है, उसके तहत इन्हें अप्वाइंट किया गया है।
सरकार की पैरवी सबसे खराब इस मुद्दे पर रही है, जिन वकीलों ने यूपी सरकार की ओर से शिक्षा मित्रों की पैरवी कर रहे थे, उन्होंने कोई ऐसी बात नहीं कि जिससे शिक्षा मित्रों को राहत मिलती। ये फेल्योर पूरी तरीके से सरकार का है।

रिव्यू करने का कोई फायदा नहीं है, चाहे 4 जजों की बेंच में जाएं, या फिर 7 जजों की बेंच में कोई फायदा नहीं होगा। क्योंकि बहस तो उसी फैसले पर होगी जो हाईकोर्ट से चला आ रहा है। ये मुद्दा सरकार का है, कि वो अपने यहां के लोगों को कैसे और कहां, कब नौकरी देती है। कई राज्यों की सरकार ने एनसीटीई के नियमों में बदलाव कर अपने यहां टीचर्स की कमी को पूरा किया है।

आरटीई एक्ट 2009 में संशोधित किया जा सकता है। सरकार रूल्स में बदलाव करेगी तो कोर्ट को कोई दिक्कत नहीं होगी। अगर किसी ने नियमों के चैलेंज देगा, तब बात नियमों के दायरे की आ जाएगी। वैसे भी जब अन्य प्रदेशों में किसी ने सवाल नहीं उठाया, तो कोई यहां क्यों करेगा। गेंद यूपी सरकार के पाले में है, अब ये बात पूरी सरकार के विल पॉवर पर आ गई है।

सुप्रीम कोर्ट में शिक्षा मित्रों के केस से जुड़े वरिष्ठ वकील पीएन मिश्रा ने कहा, ”सरकार इन्हें चाहे तो स्कूलों में गैर-शैक्षणिक कामों के लिए इस्तेमाल कर सकती है” शिक्षा मित्र पिछले 15 सालों से पढ़ा रहे हैं, उनके अनुभव के आधार पर सरकार उन्हें मैनेज कर सकती है। समान काम, समान वेतन की तर्ज पर सरकार उनकी भर्ती कर सकती है। इसके लिए उनके सालों से पढ़ा रहे अनुभव को आधार बनाया जा सकता है। पंजाब, उत्तराखंड में शिक्षा मित्र भी काम कर रहे हैं, वहां की सरकारों ने भी किया है, उन्हें ऐसा करना चाहिए।

शिक्षा व पॉलिटिकल क्षेत्र से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार राजेश शुक्ला ने कहा कि “सरकार के पास इस समस्या का समाधान हमेशा से था, लेकिन शिक्षा मित्रों को हर सरकार ने वोट बैंक समझा और इस्तेमाल करती रहीं”। जब शिक्षा मित्रों की नियुक्त 2001 में हुई थी, तो 12वीं पास को भर्ती कर लिया गया था, एक प्रकार से पार्टटाइम के तौर पर ही सही, वो पढ़ाएंगे।उस वक्त टीचरों की कमी बहुत थी। एक जनरल टीईटी आयोजित कर सरकार के पास समायोजित करने के रास्ते हैं। जैसे मुलायम सरकार ने उर्दू शिक्षकों की नियुक्ति की थी, जिसमें सिर्फ भाषा की परीक्षा ली थी।

इसके अलावा चाहे तो राज्य सरकार अगर चाहे तो शिक्षा मित्र पद पर रख सकती है। जिसमें हमें उसी पद पर रखते हुए शिक्षकों के समान सारी सुविधाएं दे सकती है। इसमें मानदेय बढ़ाकर रख सकते हैं, सरकार वर्तमान कार्ययोजना बनाए, सिर्फ स्कूलों के प्रिसिंपल को सिर्फ पढ़ाने के लिए ही रखा जाएगा, बाकी के काम के लिए गैर शैक्षणिक पदों पर भर्ती शिक्षा मित्रों की जाए।

शिक्षा के क्षेत्र में सालों से काम कर रहे एक्सपर्ट राजन पांडे ने कहा कि- “शिक्षा मित्रों के मामले में सरकार को टीईटी अनिवार्य करके उन्हें नियुक्ति दें”।
यदि एक टीचर टीईटी पास करने से डरेगा तेा वो बच्चों को पढाएगा क्या?इसलिए थोड़ा संशोधन के साथ उन्हें मौका देना चाहिए। इससे प्रदेश में क्वालिटी एजुकेशन आएगा। अगर टीईटी इतना जरूरी है तो जो सहायक अध्यापक हैं उनमें भी करीब 32 हजार से ज्यादा ऐसे हैं, जो पहले से पढ़ा रहे हैं। वो टीईटी पास नहीं हैं,तो उनको भी टीईटी पास होने तक पढ़ाने से रोका जाए, सभी सुविधाएं रोकी जाएं।
आरटीई में संशोधन सम्भव,राज्य सरकार अपने अधिकार का इस्तेमाल करें

सरकार शिक्षा मित्रों के लिए आरटीई एक्ट 2009 में संशोधन करके इन्हें बहाल कर सकती है। शिक्षा मित्रों को इन्हीं के पद पर रखते हुए इनकी नियमावली में बदलाव किया जाए। संविधान के हिसाब से संसद के बनाए नियम को राज्य सरकार को अपने राज्य के हिसाब से बदलाव करने का हक होता है।

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