img

Up Kiran, Digital Desk: उत्तराखंड के धराली गांव में आई भीषण प्राकृतिक आपदा ने न केवल घरों को मलबे में तब्दील कर दिया, बल्कि वर्षों की मेहनत, व्यापार और सपनों को भी पलभर में छीन लिया। लेकिन इस दुखद मंजर के बीच कुछ लोगों की जान एक ऐसे सहारे से बच पाई जिसकी शायद किसी ने कल्पना भी नहीं की थी जंगल।

जब मंगलवार दोपहर कुदरत ने कहर बरपाया और मूसलाधार बारिश के साथ भूस्खलन ने धराली में हाहाकार मचाया, तो कई परिवारों ने मलबे से जान बचाने के लिए पहाड़ी जंगल की ओर दौड़ लगाई। इन बेकसूर लोगों के पास न तो कोई योजना थी और न ही समय सिर्फ जान बचाने की बेचैनी थी।

इन भागे हुए लोगों को जंगल में कुछ राहत तब मिली जब उन्हें इंडो-तिब्बतन बॉर्डर पुलिस (ITBP) के जवानों की मौजूदगी का एहसास हुआ। ये जवान न सिर्फ इन्हें सुरक्षित स्थानों पर ले गए, बल्कि तीन दिनों तक उन्हें भोजन, आश्रय और संबल भी दिया। शुक्रवार को इन सभी को चिन्यालीसौड़ और अन्य सुरक्षित जगहों पर हेलिकॉप्टर की मदद से पहुंचाया गया।

बचन सिंह का परिवार भी उन्हीं लोगों में से है, जिन्हें इस त्रासदी ने बेघर और बेसहारा बना दिया। शुक्रवार को जब वे चिन्यालीसौड़ हेलीपैड पहुंचे, तो उनकी पत्नी के चेहरे पर भय और सदमे की छाया स्पष्ट दिखाई दे रही थी। संवाददाता ने जब उस दिन के बारे में पूछा, तो उनका जवाब था, "कुछ याद नहीं... बस इतना पता है कि घर, होटल, गाड़ी सब कुछ खत्म हो गया। किसी तरह भागे और जंगल में छुपे। बारिश हो रही थी, कपड़े भीग गए थे... जो शरीर पर थे, वही हमारे पास थे।"

उनका कहना था कि यदि जंगल नहीं होता, तो शायद वे आज जिंदा न होते। ITBP के जवानों को वह 'फरिश्ता' मानती हैं, जिन्होंने न केवल उन्हें ढांढस बंधाया, बल्कि तीन दिन तक परिवार की तरह उनका साथ दिया।

धराली के लोगों की यह कहानी एक चेतावनी है कुदरत की अनदेखी कितनी भारी पड़ सकती है। केदारनाथ के बाद अब धराली की यह आपदा फिर से याद दिला रही है कि पर्वतीय क्षेत्रों में रह रहे लोगों को किस हद तक तैयार रहने की ज़रूरत है।

--Advertisement--