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Up Kiran, Digital Desk: राजनीति एक ऐसा मैदान है जहां हार और जीत, दोनों ही स्थायी नहीं होतीं. लेकिन बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में महागठबंधन को मिली करारी हार के बाद अब एक बहुत बड़ी खबर सामने आ रही है, जिसने बिहार की राजनीति में हलचल मचा दी है! राष्ट्रीय जनता दल (RJD) सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की बेटी रोहिणी आचार्य (Rohini Acharya) ने 'राजनीति छोड़ने' (quits politics) का ऐलान कर दिया है. और उनके इस फैसले के पीछे की वजह भी उतनी ही मार्मिक है, क्योंकि उन्होंने इस हार की 'सारी ज़िम्मेदारी' (taking all the blame) अपने सिर ले ली है. यह कदम न सिर्फ आरजेडी, बल्कि पूरे बिहार के राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बन गया है.

क्यों लिया रोहिणी आचार्य ने ये बड़ा फैसला?

रोहिणी आचार्य पिछले कुछ समय से सक्रिय राजनीति में थीं और सोशल मीडिया पर काफी मुखर रहती थीं. उनकी राजनीति में एंट्री और फिर उनका योगदान काफी सुर्खियों में रहा था, खासकर तब जब उन्होंने अपने पिता लालू यादव को अपनी किडनी दान कर मिसाल पेश की थी. लेकिन बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन के खराब प्रदर्शन ने उन्हें गहरे सदमे में डाल दिया है.

  1. हार की नैतिक जिम्मेदारी: रोहिणी आचार्य ने साफ तौर पर कहा है कि वह इस चुनावी हार की नैतिक जिम्मेदारी लेती हैं. यह उनका खुद का फैसला है और यह दर्शाता है कि वह परिणाम को स्वीकार करती हैं. राजनीति में नैतिक जिम्मेदारी लेना एक बहुत बड़ा कदम माना जाता है.
  2. तेजस्वी यादव पर अप्रत्यक्ष प्रभाव?: भले ही उन्होंने सीधे तौर पर किसी और पर दोष नहीं मढ़ा है, लेकिन उनके इस कदम का अप्रत्यक्ष प्रभाव राजद के भीतर और उसके नेतृत्व, खासकर उनके भाई तेजस्वी यादव पर भी पड़ सकता है.
  3. सियासी भविष्य पर सवाल: उनके इस अचानक राजनीति छोड़ने के फैसले से उनके खुद के सियासी भविष्य पर भी सवाल खड़ा हो गया है. क्या यह अस्थायी है या उन्होंने वाकई हमेशा के लिए राजनीति को अलविदा कह दिया है?
  4. भावनाओं का ज्वार: इस तरह के फैसले अक्सर हार के बाद पैदा हुई गहरी भावनात्मक निराशा का नतीजा होते हैं.

लालू परिवार के लिए यह खबर वाकई में एक बड़ा झटका है, क्योंकि परिवार के सदस्यों का राजनीति में आना और सक्रिय भूमिका निभाना हमेशा से उनकी पहचान रही है. रोहिणी आचार्य का राजनीति छोड़ना यह भी दिखाता है कि कैसे चुनावी परिणाम किसी के भी राजनीतिक करियर और फैसलों पर गहरा असर डालते हैं. अब देखना यह दिलचस्प होगा कि उनके इस फैसले पर राजद और परिवार के अन्य सदस्य कैसे प्रतिक्रिया देते हैं और बिहार की राजनीति में इसके क्या दूरगामी परिणाम होते हैं.