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Up Kiran, Digital Desk: भारत और चीन के बीच लंबे समय से चली आ रही तल्ख़ी के बाद अब कूटनीतिक गलियारों में रिश्तों में सुधार की सुगबुगाहट महसूस की जा रही है। गलवान घाटी में हुए टकराव के बाद दोनों एशियाई पड़ोसी अब धीरे-धीरे संवाद की पटरी पर लौटते नजर आ रहे हैं। दिलचस्प बात यह है कि यह सब कुछ उस वक्त हो रहा है जब अमेरिका, खासकर डोनाल्ड ट्रंप की नीतियां, वैश्विक मंच पर नए तनाव पैदा कर रही हैं।
इस पूरे घटनाक्रम के केंद्र में हैं चीन के विदेश मंत्री वांग यी, जो भारत यात्रा पर आए हैं। मंगलवार को उन्होंने विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर से मुलाकात की। यह मुलाकात सिर्फ एक औपचारिक दौरा नहीं, बल्कि रणनीतिक दृष्टि से बेहद अहम मानी जा रही है।
बातचीत में क्या रहा खास?
विदेश मंत्री जयशंकर ने दोनों देशों के रिश्तों को एक ‘मुश्किल दौर’ से निकलकर आगे बढ़ने की प्रक्रिया बताया। उनके मुताबिक, अब वक्त आ गया है कि भारत और चीन रिश्तों को नई दिशा दें जहां आपसी सम्मान, संवेदनशीलता और साझा हितों को प्राथमिकता दी जाए।
जयशंकर ने यह भी कहा कि दोनों देशों को अपने मतभेदों को विवाद का रूप नहीं देने देना चाहिए। साथ ही, उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि प्रतिस्पर्धा को संघर्ष में तब्दील होने से रोकना जरूरी है। इस दौरान अंतर्राष्ट्रीय मामलों पर भी चर्चा हुई, जिसमें बहुध्रुवीय वैश्विक व्यवस्था और सुधारात्मक बहुपक्षवाद की जरूरत पर जोर दिया गया।
चीन की अमेरिका पर परोक्ष टिप्पणी
बैठक के बाद चीन की ओर से आए आधिकारिक बयान ने अमेरिका की भूमिका पर सवाल उठाते हुए अप्रत्यक्ष रूप से उसकी नीतियों की आलोचना की। वांग यी ने स्पष्ट रूप से कहा कि दुनिया एक ऐसे बदलाव के दौर से गुजर रही है, जैसा कि सदी में शायद ही कभी देखने को मिलता है।
उन्होंने बिना किसी देश का नाम लिए कहा कि एकतरफा दबाव और धमकियों का दौर बढ़ता जा रहा है। ऐसे में भारत और चीन जैसे दो बड़े विकासशील देशों की जिम्मेदारी बनती है कि वे मिलकर एक स्थायी और संतुलित वैश्विक व्यवस्था को बढ़ावा दें। हम उनका दुनिया पर जोर नहीं चलने देंगे।
साझा हितों की नई भूमिका
भारत और चीन की संयुक्त जनसंख्या दुनिया की कुल आबादी का एक बड़ा हिस्सा है, और दोनों देश विकासशील राष्ट्रों के लिए नेतृत्व की भूमिका निभा सकते हैं। चाहे वह बहुपक्षीय वैश्विक मंच हो या आर्थिक संतुलन की बहस दोनों देशों के बीच सहयोग की काफी संभावनाएं हैं।
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