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Up Kiran, Digital Desk: बिहार विधानसभा चुनाव की गहमागहमी के बीच, 'जन सुराज' पार्टी के चुनावी भविष्य को लेकर पहले ही बड़ी घोषणाएँ कर चुके प्रशांत किशोर (पीके) ने अपना प्रचार-अभियान एक अनूठे तरीके से चलाया। चुनाव की तारीखों का ऐलान होते ही, उन्होंने बिहार के 38 ज़िलों की 168 विधानसभा सीटों पर लगातार प्रचार किया।

रोज़ाना, पीके की सफेद एंडेवर एसयूवी की छत पर सवार होकर प्रचार करते हुए तस्वीरें और वीडियो सामने आते रहे। लेकिन, इस पूरे प्रचार के दौरान एक बात गौर करने लायक रही: उन्होंने कभी भी एयरपोर्ट पर मीडिया से बात नहीं की, न ही उन्हें किसी हेलीकॉप्टर से उड़ान भरते देखा गया।

यह बात तब और भी चौंकाने वाली थी जब तेज प्रताप यादव, पप्पू यादव और आई.पी. गुप्ता जैसे राजनीतिक दिग्गज भी चुनाव में 'उड़नखटोले' का इस्तेमाल कर रहे थे। पैसों की कोई कमी नहीं होने के बावजूद, प्रशांत किशोर ने हवाई यात्रा के बजाय सड़क मार्ग से कार पर सवार होकर प्रचार का थका देने वाला रास्ता चुना। उनकी पार्टी के बिहार अध्यक्ष, मनोज भारती ने अब इसके पीछे की वजह बताई है।

238 सीटों पर जन सुराज

जन सुराज पार्टी इस चुनाव में 238 विधानसभा क्षेत्रों में अपने उम्मीदवार उतार रही है। कुछ पर्चे रद्द हो गए या कुछ प्रत्याशियों ने बीच में ही किसी और के पक्ष में नाम वापस ले लिया। पीके ने अपनी पूरी ताकत रोड शो और जनसभाओं पर ही लगाई।

कई जगहों पर, जन सुराज के उम्मीदवारों की उपस्थिति ने चुनावी मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है। जीत-हार का फैसला जो भी हो, लेकिन चुनावी पंडितों के आकलन में अब जन सुराज को मिलने वाले संभावित वोटों की गिनती हो रही है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि यह पार्टी किसका वोट काट रही है, जिससे महागठबंधन और एनडीए दोनों ही खेमे चिंतित हैं।

"आसमान से नहीं, मिट्टी से बदलेंगे बिहार": मनोज भारती

जन सुराज के प्रदेश अध्यक्ष मनोज भारती ने प्रशांत किशोर के इस अलग प्रचार-शैली का रहस्य खोला। उन्होंने बताया कि तीन साल पहले जब पदयात्रा शुरू हुई थी, तभी यह तय हो गया था कि बिहार की राजनीति को आसमान से नहीं बदला जाएगा।

भारती के अनुसार, "बिहार की असली शक्ति धूल भरी पगडंडियाँ, खेतों की मेड़ें, गाँव की चौपालें और वे गलियाँ हैं जहाँ जनता उम्मीद और संघर्ष के साथ खड़ी रहती है। हेलीकॉप्टर से केवल भीड़ दिखती है, जनता का दुख-दर्द नहीं।"

उन्होंने जोर देकर कहा कि हवा में उड़कर भाषण देना आसान है, लेकिन जमीन पर उतरकर लोगों की आँखों में छिपी उम्मीदों को पढ़ना बेहद मुश्किल है, और प्रशांत किशोर ने यही कठिन रास्ता चुना है।