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शासनादेश के उपरांत विधायकों को बेचने खरीदने को हॉर्स ट्रेडिंग कहा जाता है. ये अपमानजनक शब्द इन दिनों बिहार की हर सियासी गली में 'खेला होगा...खेल होगा' जैसे शब्दों के रूप में इज्जत के साथ बोला जा रहा है. आसान भाषा में कहें तो बिहार में असल में विधायक बेचे जा रहे हैं. 12 फरवरी को सिर्फ दो बातें पता चलेंगी- 1. इन्हें किसने खरीदा? और, 2. अगर बेचा तो क्या दाम मिला?

बीते दिनों बिहार विधानसभा में फ्लोर टेस्ट से पहले शनिवार-रविवार का दिन-रात भारी है। खरीद-बिक्री हुई या नहीं, 12 फरवरी को विधानसभा में सीएम नीतीश कुमार की राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार के बहुमत परीक्षण के साथ ये पता चल जाएगा। अगर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के पास बीजेपी के 78, जेडीयू के 45, हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा-सेक्युलर के चार और एक निर्दलीय मिलाकर 128 एमएलए पूरे हुए तो कांग्रेस का ये दावा खारिज हो जाएगा कि BJP उसके विधायकों को खरीदने का प्रयास कर रही थी।

अगर JDU के 45 विधायक सदन में सत्ता का समर्थन करते नजर आए तो लालू प्रसाद यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल की मौज खत्म हो जाएगी, क्योंकि वह सीएम नीतीश कुमार की पार्टी JDU के टूट को लेकर मूंछ पर ताव दिखा रही है। इसके अलावा JDU की चिंता भी दूर होगी। इस मामले में सबसे ज्यादा मौज में BJP ही लग रही है, क्योंकि 2024 के लोकसभा इलेक्शन में नतीजे का अंदाजा लगाने वाला कोई विधायक शायद ही फिलहाल उसका साथ छोड़ने का जोखिम उठाएगा।

खेला की लौ जलाने वाले ही शांत

खेला होगा- विपक्षी खेमे में इसकी उम्मीद जगाने वाले पूर्व सीएम जीतन राम मांझी को संदेश मिल गया है और अब वो अपने ही जलाए दिए की लौ को बंद करने में जुटे हैं। उन्हें अंदाजा है कि जीरो विधायक वाले नेता उन्हें सीएम बना नहीं सकते हैं और विधानसभा में 79 लोगों वाली पार्टी अपना सपना तोड़कर चार विधायक वाले उनके दल को मुख्यमंत्री का प्रस्ताव देगी नहीं। डबल इंजन से उन्हें क्या फायदा मिलेगा, वो संदेश पहुंच चुका है। वैसे, मांझी के बहाने ही एनडीए ने खेला की चर्चा गरम की। उस गर्म माहौल में कांग्रेस ने घी डाल दिया ऑफर देकर। वैसे, ये घी अब सर्दी में जमा नजर आ रहा है।

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