_509240422.png)
Up Kiran, Digital Desk: राजस्थान के अंता विधानसभा क्षेत्र से विधायक कंवरलाल मीणा की विधायकी अब संकट में है। बारां की एक अदालत ने उन्हें दो साल की सजा सुनाई है, जिससे उनकी विधानसभा सदस्यता पर खतरा मंडरा रहा है। अब यह फैसला विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी के हाथों में है, जिनके पास विशेषाधिकार है कि वे दोषी पाए गए विधायक की सदस्यता को रद्द कर सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट के लिली थॉमस मामले में दिए गए निर्णय के बाद यह साफ हो गया था कि यदि कोई जनप्रतिनिधि अदालत से दोषी ठहराया जाता है और उसे दो साल या उससे अधिक की सजा होती है, तो वह स्वत: अयोग्य हो जाएगा। ऐसे में कंवरलाल मीणा की सजा के बाद उनके विधानसभा सदस्य बने रहने पर सवाल उठने लगे हैं।
लिली थॉमस केस का असर: विधायकों की अयोग्यता की ओर अहम कदम
2013 में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक 'लिली थॉमस बनाम भारत संघ' मामले में यह फैसला सुनाया गया था कि अगर किसी जनप्रतिनिधि को दो साल या उससे अधिक की सजा होती है, तो वह स्वचालित रूप से अपनी सदस्यता खो देगा। पहले इस तरह के मामलों में दोषी पाए गए जनप्रतिनिधियों को अपील करने के लिए तीन महीने का समय मिलता था, और तब तक वे अपने पद पर बने रह सकते थे। मगर अब इस फैसले के बाद, बिना किसी अपील के वह व्यक्ति अपनी सदस्यता खो देगा।
इस मामले में अब कंवरलाल मीणा के खिलाफ अदालत का आदेश लागू हुआ है, जिसके बाद विधानसभा अध्यक्ष को उनके मामले पर निर्णय लेने का अधिकार है। यह सुनिश्चित करेगा कि क्या वे विधायक के रूप में बने रहेंगे या उनकी सदस्यता समाप्त हो जाएगी।
राजस्थान में आपराधिक आरोपों का बढ़ता असर: विधायकों के खिलाफ कार्रवाई
राजस्थान में पिछले दो दशकों में कई ऐसे मामले सामने आए हैं, जिनमें विधायकों और मंत्रियों पर गंभीर आपराधिक आरोप लगे हैं। इनमें से कुछ को दोषी ठहराया गया और उनकी सदस्यता समाप्त कर दी गई, वहीं कई मामले ऐसे भी रहे हैं जिनमें विधायकों को बाद में अदालत से बरी कर दिया गया।
राजस्थान विधानसभा में 2001 से 2025 के बीच 40 से अधिक विधायकों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। इनमें से कुछ मामलों में चार्जशीट दाखिल हो चुकी है और कुछ की सुनवाई चल रही है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद, ऐसे मामलों की गति तेज हो गई है और आने वाले समय में और भी विधायकों की सदस्यता पर संकट आ सकता है।
राजनीतिक संकट: आरोपों का असर चुनावों पर
कंवरलाल मीणा जैसे वरिष्ठ विधायक की सदस्यता संकट में आने से न केवल उनका राजनीतिक भविष्य अधर में लटका है, बल्कि राज्य की राजनीति में भी हलचल मच गई है। इस फैसले के बाद राज्य की सत्ताधारी पार्टी और विपक्षी पार्टियों के लिए यह एक बड़ा मुद्दा बन सकता है। विधानसभा चुनावों से पहले ऐसे मामलों का सामने आना राजनीति के लिए नई चुनौतियां पैदा कर सकता है।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इस तरह के घटनाक्रमों से पार्टी की छवि पर असर पड़ता है और यह आगामी चुनावों में असर डाल सकता है। हालांकि, यह भी देखा जाएगा कि क्या राज्य सरकार कंवरलाल मीणा के समर्थन में खड़ी रहती है या उसे पार्टी के अनुशासन के तहत कार्रवाई करनी पड़ेगी।
क्या कंवरलाल मीणा की सदस्यता खत्म होगी
अब तक इस पर अंतिम फैसला नहीं आया है, मगर विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी के पास यह अधिकार है कि वे कंवरलाल मीणा की सदस्यता को रद्द कर सकते हैं। अगर मीणा की सदस्यता समाप्त होती है, तो यह एक अहम राजनीतिक घटनाक्रम होगा, क्योंकि कंवरलाल मीणा न केवल अंता क्षेत्र के विधायक हैं, बल्कि उनकी पार्टी के लिए भी उनका स्थान अहम है।
हालांकि, यह फैसला न केवल कंवरलाल मीणा, बल्कि अन्य विधायकों के लिए भी एक चेतावनी हो सकता है, जिनके खिलाफ आपराधिक मामले चल रहे हैं। ऐसे मामलों में राजनीतिक दबाव और कानूनी प्रक्रिया के चलते किसी भी विधायक का भविष्य अनिश्चित हो सकता है।
--Advertisement--