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Up Kiran, Digital Desk: सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश, जस्टिस जे.के. माहेश्वरी ने कानून की पढ़ाई कर रहे युवाओं के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात कही है। उन्होंने कहा है कि 'मूट कोर्ट' यानी अदालती कार्यवाही का अभ्यास, युवा और उभरते हुए कानूनी पेशेवरों को आकार देने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह सिर्फ एक अतिरिक्त गतिविधि नहीं, बल्कि कानूनी शिक्षा का एक अनिवार्य हिस्सा है।

जस्टिस माहेश्वरी सिम्बायोसिस लॉ स्कूल, पुणे द्वारा आयोजित एक राष्ट्रीय मूट कोर्ट प्रतियोगिता के उद्घाटन समारोह में बोल रहे थे।

क्या होता है ‘मूट कोर्ट: मूट कोर्ट' असल में एक नकली अदालत होती है, जहां कानून के छात्र एक काल्पनिक मामले पर बिल्कुल असली वकीलों की तरह बहस करते हैं। यहां वे सीखते हैं कि एक जज के सामने अपनी बात कैसे रखनी है, सबूत कैसे पेश करने हैं और कानूनी तर्कों का इस्तेमाल कैसे करना है।

किताबों और असलियत के बीच का पुल

जस्टिस माहेश्वरी ने इस बात पर जोर दिया कि कानून की किताबें पढ़ना एक बात है, लेकिन उस ज्ञान को अदालत में इस्तेमाल करना बिल्कुल दूसरी बात है। 'मूट कोर्ट' इसी खाई को पाटता है। यह छात्रों को एक ऐसा प्लेटफॉर्म देता है, जहां वे अपनी कानूनी समझ, रिसर्च करने की क्षमता और बोलने की कला को निखार सकते हैं।

उन्होंने कहा, "यह एक लैब की तरह है, जहां छात्र असली कोर्ट में जाने से पहले अपनी गलतियों से सीखते हैं। यह उन्हें आत्मविश्वास देता है और उनके मन से जज के सामने खड़े होने का डर निकालता है।"

क्यों है यह इतना जरूरी?प्रैक्टिकल ट्रेनिंग: यह छात्रों को सिखाता है कि कानून का व्यावहारिक उपयोग कैसे किया जाता है।

रिसर्च की कला: किसी भी केस को जीतने के लिए गहरी रिसर्च जरूरी है, और मूट कोर्ट इसकी आदत डालता है।

टीम वर्क: यह छात्रों को एक टीम के रूप में मिलकर काम करना सिखाता है, जो वकालत के पेशे में बहुत जरूरी है।

जस्टिस माहेश्वरी के अनुसार, मूट कोर्ट में हिस्सा लेना हर उस छात्र के लिए जरूरी है, जो भविष्य में एक सफल वकील या जज बनना चाहता है। यह उन्हें उन चुनौतियों के लिए तैयार करता है, जिनका सामना उन्हें अपने करियर में हर दिन करना पड़ेगा