बीजेपी ने लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल जीत लिया है। पांच राज्यों में से मिजोरम के परिणाम सोमवार को आएंगे। बाकी चार में से भाजपा ने मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में जीत हासिल की, जबकि कांग्रेस ने तेलंगाना में जीत हासिल की। राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी एवं कांग्रेस को बारी-बारी से सत्ता देने की परंपरा तीस साल तक जारी रही। पांच सौ रुपए में गैस सिलेंडर और जीवन भर पच्चीस लाख रुपए तक मुफ्त इलाज की योजना का जादू दिखाने की अटकलें झूठी साबित हुईं। उनमें लड़ने की क्षमता है; पर, वे इस प्रथा को नहीं बदल सके।
MP में गेम चेंजर साबित हुई ये योजना
MP में 2013 की तरह इस बार भी शिवराज सिंह चौहान ने सीधी जीत हासिल की। उनकी 'लाडली बहना' योजना, जो हर महीने महिलाओं के खातों में एक निश्चित राशि जमा करती है, गेम चेंजर साबित हुई। उन्होंने डेढ़ माह में एक सौ साठ से अधिक बैठकें कर बहनों से मुलाकात की। इसी मेहनत से सफलता मिली।
विकट परिस्थितियों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे और गृह मंत्री अमित शाह की रणनीति के दम पर बीजेपी ने इन तीनों राज्यों में जीत हासिल की है। कुछ महीनों बाद आने वाले लोकसभा फाइनल को ध्यान में रखते हुए, पिछली बार मध्य प्रदेश की 29 में से 28 सीटों, राजस्थान की सभी 25 सीटों और छत्तीसगढ़ की ग्यारह में से 10 सीटों की शानदार सफलता को दोहराने के लिए विधानसभा जीतना जरूरी था।
पिछली बार जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोकप्रियता की लहर पर सवार थे तब कांग्रेस ने इन राज्यों में जीत हासिल की थी। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में पंद्रह साल की सत्ता विरोधी लहर एक महत्वपूर्ण कारक थी। इसे पहचानते हुए इस साल सिर्फ मोदी का चेहरा, हर सीट का गहन अध्ययन, उसके अनुरूप उम्मीदवारों का चयन और जीत के लिए जरूरी छोटी-बड़ी बातों पर बारीकी से ध्यान देना ही बीजेपी की रणनीति का नतीजा रहा।
लोकसभा और विधानसभा चुनाव क्रमश: प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के चेहरे के साथ लड़ने की पहल करने वाली BJP ने हाल ही में उत्तर प्रदेश को छोड़कर बाकी सभी जगहों पर ऐसे चेहरे के बिना विधानसभा चुनाव लड़ने की नीति लागू की है। इस समय केंद्रीय मंत्रियों और सांसदों को विधानसभा के मैदान में लाकर मुख्यमंत्री पद के लिए अप्रत्यक्ष प्रतिस्पर्धा का खेल खेला गया। इक्कीस सांसदों को, मध्य प्रदेश और राजस्थान में सात-सात, छत्तीसगढ़ में चार और तेलंगाना में तीन, कांग्रेस के प्रभुत्व वाली सीटों पर मैदान में उतारा गया। अपवाद स्वरूप अधिकांश ने जीत हासिल की। इसका असर आसपास के विधानसभा क्षेत्रों पर भी पड़ा और बीजेपी की ताकत बढ़ गई।
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