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धर्म डेस्क। शारदीय नवरात्र महोत्सव तीन अक्टूबर से प्रारंभ हो रहा है। इस दिन से लोग घरों में कलश स्थापित करके देवी दुर्गा की आराधना करेंगे। पुराणों में कलश को भगवान विष्णु का प्रतीक माना गया है। इसलिए यदि नवरात्र में विधि विधान के साथ कलश की स्थापना भगवान विष्णु के आगमन का आह्वान भी है। जिस पर भी सृष्टि के पालक भगवान विष्णु की कृपा हो जाए उसके पास व्याधि आने से घबराती हैं। इसलिए नवरात्र में कलश स्थापना पुरे विधि-विधान एवं वास्तु शास्त्र के नियमों के अनुसार ही करना चाहिए।

वास्तु शास्त्र के अनुसार नवरात्र में कलश स्थापना के लिए ईशान कोण अर्थात उत्तर- पूर्व दिशा शुभ मानी जाती है। लोक मान्यता के अनुसार  ईशान कोण देवी-देवताओं की दिशा है। इसलिए  ईशान कोण में कलश एवं मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित करना चाहिए। इसी तरह नौ दिनों तक प्रजव्वलित रहने वाली अखंड ज्योत को पूजा सथल पर दक्षिण- पूर्व दिशा में रखना चाहिए। दक्षिण- पूर्व दिशा अखंड ज्योत के लिए शुभ मानी जाती है। इससे स्वास्थ्य लाभ के साथ ही लक्ष्मी की भी कृपा बरसती है।

सनातन समाज में किसी भी शुभ अवसर पर नकारात्मक शक्तियों को रोकने के लिए मुख्य द्वार पर 'ऊँ' एवं माता लक्ष्मी के चरण चिह्न अंकित किया जाता है। लोग स्वास्तिक भी बनाते हैं। ये सब बेहद शुभ माना जाता है। इससे घर व आपसपास की नकारात्मक ऊर्जा का शमन हो जाता है। मां लक्ष्मी की कृपा से घर-परिवार निरन्तर तरक्की करता है।

इसी तरह नवरात्र में या व्यापार स्थल के मुख्य द्वार पर पूर्व या उत्तर दिशा में छोटे कलश की स्थापना करना शुभ माना गया है। कलश में लाल और पीले रंग के फूल अर्पित करें। इससे कैरियर में उछाल तेजी से उछाल आता है। व्यवसाय में लगे लोगों का लाभ में भी बढ़ोत्तारी होने लगती है।
 

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