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Up Kiran, Digital Desk: सुनवाई के दौरान अक्सर ऐसे फैसले आते हैं जो सीधे हमारी ज़िंदगी से जुड़े होते हैं, और यह एक ऐसा ही मामला है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को एक बहुत ही महत्वपूर्ण निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा है कि जब भी सरकार सोशल मीडिया पर दिखाए जाने वाले कंटेंट को लेकर कोई नियम या गाइडलाइन बनाए, तो उसे राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (National Biodiversity Authority - NBA) से सलाह ज़रूर लेनी चाहिए।

ये फैसला क्यों है इतना खास?

सोचिए, एक तरफ जहाँ हम सोशल मीडिया पर तस्वीरें, वीडियो और जानकारी शेयर करते हैं, वहीं दूसरी तरफ यह भी ज़रूरी है कि इस प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल गलत कामों के लिए न हो। खासकर, वन्यजीवों के अवैध व्यापार (illegal wildlife trade) या ऐसी किसी भी सामग्री को बढ़ावा देने के लिए जिसका जैव विविधता पर बुरा असर पड़े।

सुप्रीम कोर्ट ने इसी बात पर ज़ोर दिया है कि जब सोशल मीडिया पर कंटेंट को रेगुलेट करने के लिए नियम बनाए जा रहे हों, तो जैव विविधता की रक्षा जैसे महत्वपूर्ण पहलू को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (NBA) जैसी संस्थाएं इस मामले में विशेषज्ञ राय दे सकती हैं कि कैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर ऐसी सामग्री को रोका जा सके जो हमारे प्राकृतिक संसाधनों और वन्यजीवों के लिए खतरा बन सकती है।

क्या है राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (NBA)?

NBA भारत सरकार की एक ऐसी संस्था है जो हमारे देश की जैव विविधता (यानी पेड़-पौधों, जानवरों और उनके रहने की जगहों की विविधता) की रक्षा और संरक्षण के लिए काम करती है। यह सुनिश्चित करती है कि प्रकृति के साथ छेड़छाड़ न हो और उसका सही तरीके से इस्तेमाल हो।

सुप्रीम कोर्ट का मकसद

कोर्ट का यह निर्देश यह सुनिश्चित करने के लिए है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स का इस्तेमाल अवैध गतिविधियों, खासकर वन्यजीवों की तस्करी या प्रदूषण फैलाने वाली सामग्री को बढ़ावा देने के लिए न हो। सरकार को इन नियमों को बनाते समय NBA जैसी विशेषज्ञ संस्थाओं की राय लेना, एक जिम्मेदार कदम होगा। यह दिखाता है कि कोर्ट डिजिटल दुनिया के साथ-साथ हमारी प्राकृतिक दुनिया को भी सुरक्षित रखना चाहता है।

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