
बीजिंग में शुक्रवार को चीन ने अमेरिका पर तीखा पलटवार करते हुए वहां से आने वाले सभी उत्पादों पर 34 प्रतिशत तक का अतिरिक्त शुल्क लगाने की घोषणा की। यह कदम अमेरिका द्वारा चीनी उत्पादों पर लगाए गए समान शुल्क के जवाब में उठाया गया है। चीन का यह फैसला ऐसे समय में आया है जब वैश्विक बाजार पहले से ही अस्थिरता से जूझ रहे हैं।
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप का बयान: चीन घबरा गया है
चीन के इस फैसले पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने प्रतिक्रिया दी। उन्होंने सोशल मीडिया पर चीन की कार्रवाई को उसकी 'घबराहट' बताया और कहा कि, "उन्होंने गलत कदम उठाया है। वे बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं कि अमेरिका अब मजबूत स्थिति में है।" ट्रंप ने यह भी साफ किया कि उनकी नीतियां नहीं बदलेंगी और अब अमेरिका के पास अपनी अर्थव्यवस्था को समृद्ध करने का अवसर है।
डब्ल्यूटीओ में पहुंचा मामला
इस पूरी घटना ने अब विश्व व्यापार संगठन (WTO) का रुख कर लिया है। चीन ने अमेरिका के खिलाफ WTO में आधिकारिक शिकायत दर्ज की है, जिसमें कहा गया है कि अमेरिकी शुल्क अंतरराष्ट्रीय व्यापार नियमों का उल्लंघन है और इससे वैश्विक व्यापार व्यवस्था को गंभीर नुकसान पहुंचा है। चीन के वाणिज्य मंत्रालय ने अमेरिका के कदम को ‘एकतरफा दबाव और अनुचित व्यापार नीति’ करार दिया है।
चीनी सामानों पर अमेरिका का कुल शुल्क 54 प्रतिशत तक पहुंचा
ट्रंप प्रशासन ने हाल ही में चीन से आने वाले उत्पादों पर 34 प्रतिशत नया शुल्क लगाया है, जिसमें 10 प्रतिशत मूल शुल्क और 24 प्रतिशत विशेष शुल्क शामिल हैं। इसके साथ ही अमेरिका में चीनी उत्पादों पर कुल शुल्क अब 54 प्रतिशत तक पहुंच चुका है। यह उस नीति के काफी करीब है जिसे ट्रंप ने अपने चुनाव अभियान के दौरान वादा किया था कि वे चीन पर 60 प्रतिशत तक का शुल्क लगाएंगे।
चीन ने भी बढ़ाया दबाव: दुर्लभ धातुओं पर निर्यात नियंत्रण
चीन ने अमेरिका के खिलाफ सिर्फ शुल्क लगाकर ही जवाब नहीं दिया, बल्कि उसने कुछ दुर्लभ मृदा तत्वों पर निर्यात नियंत्रण लागू कर दिया है। ये तत्व रक्षा, स्मार्टफोन और कंप्यूटर उद्योग के लिए बेहद महत्वपूर्ण होते हैं और इनका वैश्विक उत्पादन लगभग पूरी तरह से चीन के नियंत्रण में है। वाणिज्य मंत्रालय और सीमा शुल्क विभाग ने सात तरह के मध्यम और भारी दुर्लभ मृदा से जुड़ी वस्तुओं पर तत्काल निर्यात रोक लगाने का फैसला किया है।
16 अमेरिकी कंपनियों पर अतिरिक्त प्रतिबंध
चीन ने आगे बढ़ते हुए अमेरिका की 16 कंपनियों के खिलाफ प्रतिबंध भी लगाए हैं, जिनके उत्पाद ‘दोहरे उपयोग’ यानी सैन्य और नागरिक दोनों प्रकार के हैं। बीजिंग का कहना है कि ये कंपनियाँ ऐसी गतिविधियों में शामिल रही हैं, जो चीन की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बन सकती हैं। सरकार ने चेतावनी दी है कि इस तरह की कंपनियों को चीनी बाजार तक पहुंच नहीं दी जाएगी।
2024 में चीन-अमेरिका व्यापार का आकलन
हाल ही में जारी आंकड़ों के मुताबिक, 2024 में अमेरिका और चीन के बीच कुल वस्तु व्यापार 582.4 अरब डॉलर तक पहुंच गया था। इसमें से अमेरिका ने चीन को 143.5 अरब डॉलर का निर्यात किया, जबकि चीन से 438.9 अरब डॉलर का आयात किया गया। इस दौरान अमेरिका को चीन के साथ 295.4 अरब डॉलर का व्यापार घाटा हुआ। यह आंकड़ा दर्शाता है कि अमेरिका की नीति का उद्देश्य व्यापार घाटे को कम करना है, वहीं चीन अपनी अर्थव्यवस्था की स्थिरता को बनाए रखने के लिए प्रतिरोधात्मक उपायों पर जोर दे रहा है।
अमेरिका चीन का तीसरा सबसे बड़ा निर्यात बाजार
अमेरिका, चीन के लिए आसियान और यूरोपीय संघ के बाद तीसरा सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य है। ऐसे में चीन के लिए अमेरिका के साथ व्यापार संबंधों में स्थिरता बनाए रखना बेहद जरूरी है। लेकिन मौजूदा तनाव और शुल्क युद्ध से दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर नकारात्मक असर पड़ना तय है।
भविष्य की राह: क्या समाधान संभव है?
विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह की व्यापारिक तनातनी से वैश्विक सप्लाई चेन प्रभावित होगी। यदि यह विवाद जल्द नहीं सुलझा, तो इससे न केवल चीन और अमेरिका, बल्कि पूरी वैश्विक अर्थव्यवस्था पर असर पड़ेगा। हालांकि WTO में मामला दर्ज होने से यह संकेत मिलता है कि चीन इस मुद्दे को कूटनीतिक तरीके से सुलझाने की कोशिश कर सकता है, लेकिन अमेरिका की ओर से अभी तक कोई नरमी के संकेत नहीं मिले हैं।
यह स्पष्ट है कि आने वाले हफ्तों में व्यापार युद्ध का यह दौर और भी गर्मा सकता है और इसके परिणाम केवल दो देशों तक सीमित नहीं रहेंगे।