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Up Kiran, Digital Desk: हाल ही में हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में घटी एक शादी ने न सिर्फ लोकल मीडिया बल्कि पूरे देश में सुर्खियां बटोरीं। यह शादी आम नहीं थी — एक ही दुल्हन ने दो भाइयों से शादी की। जब लोग इस अनोखे विवाह के बारे में जानने लगे, तो 'बहुपति प्रथा' (Polyandry) फिर एक बार सामाजिक चर्चा का केंद्र बन गई।
क्या है बहुपति प्रथा और क्यों अपनाते हैं कुछ समुदाय इसे?
हिमाचल प्रदेश के ऊँचे पहाड़ी इलाकों और तिब्बती सीमावर्ती क्षेत्रों में यह परंपरा सदियों से चली आ रही है, खासकर हट्टी जनजाति और कुछ अन्य पहाड़ी समुदायों में। इस प्रथा के अनुसार, एक महिला एक से अधिक पुरुषों की पत्नी हो सकती है — और अक्सर वे पुरुष आपस में सगे भाई होते हैं।
यह परंपरा महज किसी सामाजिक सनक या धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आर्थिक और पारिवारिक संरचना की आवश्यकता से जन्मी है। जमीन का सीमित बँटवारा, आजीविका के सीमित साधन, और परिवार को एकजुट रखने की मजबूरी ऐसी प्रथाओं की वजह बनी।
वाईएस परमार की किताब ने खोले परंपरा के सामाजिक पहलू
हिमाचल प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री वाईएस परमार ने इस विषय पर न केवल शोध किया बल्कि 1975 में अपनी किताब "Polyandry in the Himalayas" के ज़रिए इस प्रथा को समझने का प्रयास भी किया। किताब में उन्होंने विस्तार से बताया है कि यह प्रथा मुख्यतः गरीब और सीमित संसाधनों वाले परिवारों में पाई जाती है, जहां सभी भाइयों के लिए अलग-अलग शादी कर पाना संभव नहीं होता।
एक ही पत्नी होने से ज़मीन, संपत्ति और संसाधनों का बंटवारा नहीं होता — जिससे परिवार संयुक्त रहता है और सामाजिक ढांचे में स्थिरता बनी रहती है।
क्या होता है भाइयों के बीच संतुलन बनाए रखने का तरीका?
बहुपति विवाह में संतुलन बनाए रखने की जिम्मेदारी अक्सर पत्नी के कंधों पर होती है। परमार की किताब के अनुसार, पत्नी खुद तय करती है कि वह कब किस पति के साथ रहेगी, और इसमें सभी भाइयों को बराबर समय देने का प्रयास होता है।
परमार लिखते हैं कि परंपरागत रूप से किसी भाई के कमरे के बाहर टोपी या जूता रखकर इशारा दिया जाता था कि वह पत्नी के साथ है — लेकिन यह तरीका तब ही संभव है जब घर में एक से अधिक कमरे हों। गरीब परिवारों में ऐसा संभव नहीं होता, ऐसे में पत्नी को ही यह संतुलन साधना होता है।
घर की मुखिया बनती है पत्नी
इस विवाह व्यवस्था में महिला सिर्फ पत्नी नहीं, बल्कि घर की व्यवस्था की केंद्रीय इकाई होती है। वह रसोई से लेकर खेतों तक काम संभालती है और यदि उसे अकेले मुश्किल महसूस हो, तो वह परिवार में एक और महिला लाने का सुझाव भी दे सकती है — जिसे फिर सभी पति साझा करते हैं।
नई पीढ़ी में परंपरा का नया रूप
सिरमौर जिले की हालिया शादी इस बात का उदाहरण है कि यह परंपरा केवल पिछड़े या गरीब समुदायों तक सीमित नहीं रही। इस बार, एक शिक्षित लड़की सुनीता चौहान ने दो भाइयों प्रदीप और कपिल नेगी से विवाह किया — जिनमें से एक सरकारी कर्मचारी है और दूसरा विदेश में काम करता है।
तीनों ने साफ कहा कि यह विवाह किसी दबाव में नहीं बल्कि परंपरा के सम्मान में किया गया। उनका कहना है कि वे इस रिश्ते से संतुष्ट हैं और इसे सामाजिक शर्म नहीं बल्कि सांस्कृतिक गौरव मानते हैं।
क्या बहुपति प्रथा आज के समय में प्रासंगिक है?
यह सवाल उठना लाज़मी है कि 21वीं सदी में इस तरह की परंपराएं कितनी उपयुक्त हैं। हालांकि शहरी भारत में यह अजीब लग सकती है, लेकिन पहाड़ी समाज की अपनी सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक परिस्थितियाँ हैं — जिन्हें बाहर से देखने पर पूरी तरह समझ पाना मुश्किल है।
विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसी परंपराएं तब तक प्रासंगिक हैं जब तक वे सहमति और सम्मान पर आधारित हों। सिरमौर की शादी ने एक बार फिर यह दिखा दिया कि सांस्कृतिक विरासत सिर्फ किताबों में नहीं, बल्कि लोगों के जीने के तरीकों में जीवित रहती है।
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