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12‑दिवसीय इज़रायल‑ईरान संघर्ष के बाद मध्य पूर्व में भारी अस्थिरता हो गई है। अमेरिकी वायु हमलों ने ईरान के तीन मुख्य परमाणु स्थलों — नतान्ज़, इस्फाहान, फोर्डो — को निशाना बनाया, जिसे ट्रंप ने "भव्य सैन्य सफलता" बताया  । इन हमलों के बाद ईरान ने अमेरिकी और इज़रायली ठिकानों पर मिसाइल हमले किए, लेकिन यह एक सामंजस्यपूर्ण रणनीति थी, ताकि आगे बढ़ने से पहले स्थितियों को समझा जा सके  ।

इन हमलों के चलते ईरानी शासन पर मतदाताओं का भरोसा कमजोर हुआ। घरेलू विरोध में वृद्धि देखी गई—जनता भारी आर्थिक दुष्प्रभाव और भारी सैन्य खर्च से संतुष्ट नहीं है; अबादी के लगभग 80% लोग इस्लामिक शासन से असंतुष्ट हैं, लेकिन संगठित परिवर्तन की कोई चंगुल नहीं हुई  । इंटरनेट ब्लैकआउट और नागरिकों की निराशा ने अस्थिरता की व्याकृति बढ़ा दी है  ।

एक प्रमुख चाल यह रही कि निर्वासन में रहने वाले राजकुमार रेज़ा पहलावी ने आंदोलन की शुरुआत की। उन्होंने 100‑दिन की संक्रमणकालीन सरकार की योजना प्रस्तुत की, और कहा कि "इस्लामिक शासन ढहने की कगार पर है" — उन्होंने इराकिल नियंत्रण और लोकतंत्र के स्थापना की बात की है  ।

लेकिन विशेषज्ञों ने चेताया है कि अचानक बदलाव के बाद हिंसक संघर्ष या क्षेत्रीय अस्थिरता पैदा हो सकती है—जैसा इराक, लीबिया या सीरिया में हुआ था। कतई किसी व्यवस्थित योजना का अभाव, सेना व सरकारी एकाधिकार, और इराकी‑इरानी सैन्य तंत्र बनाए रखना चुनौती होंगी  ।

अगर इस्लामिक शासन ढह गया, तो अगला सत्ता का धुरा असमंजस में रहेगा: रेज़ा पहलावी, रिफॉर्मिस्ट कत्र्तव्य, या फिर IRGC‑मिलिट्री मंत्रियों का गठबंधन? ऐसे विकल्प देश के धर्मनिरपेक्ष भविष्य की राह तय करेंगे  ।

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