न्यूयॉर्क॥ आतंकवादियों के साथ किसी तरह की बातचीत नहीं करने का दावा करने वाले US के प्रेसिडेंट डोनाल्ड ट्रम्प ने बुधवार को तालिबान के राजनीतिक प्रमुख मुल्ला बरादर से 35 मिनट फोन पर बात की। ये वही मुल्ला बरादर है, जिसे अफगानिस्तान में हजारों अमेरिकी सैनिकों की शहादत का जिम्मेदार बताया जाता है।
ट्रम्प ने मुल्ला बरादर से ‘अनुरोध किया कि वह अंतर अफगान वार्ता में हिस्सा लें’ ताकि पिछले 40 साल से चली आ रहे इस संघर्ष को खत्म किया जा सके। आइए जानते हैं कि डोनाल्ड ट्रम्प तालिबान नेता के सामने क्यों घुटने टेकने को मजबूर हुए। दरअसल, अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव से ठीक पहले डोनाल्ड ट्रम्प अफगानिस्तान में घिरते जा रहे हैं। ट्रम्प को उम्मीद थी कि इस शांति डील के बाद वह यूएस फैजियों को वापस अपने देश बुलाने में सक्षम हो जाएंगे।
इससे उन्हें जनता में सहानुभूति मिलेगी और प्रेसिडेंट चुनाव में लाभ होगा। हालांकि ट्रम्प का यह दांव अब उल्टा पड़ता दिखाई दे रहा है। तालिबान ने शांति डील के बाद भी हमले करना जारी रखा है। बताया जाता है कि बीते 24 घंटे में अफगानिस्तान के 16 प्रांतों में 33 हमले किए हैं। इसमें 6 आम नागरिकों की मौत हो गई है। तालिबान ने सेना के भी कई ठिकानों पर हमला किया है। इस हिंसा के बाद अमेरिका और तालिबान के बीच ऐतिहासिक समझौता संकट में पड़ गया है।
सूत्रों के अनुसार, US और तालिबान के बीच दो प्रमुख मुद्दों को लेकर मतभेद बढ़ता जा रहा है। शांति समझौते में कहा गया है कि तालिबान और अफगान सरकार के बीच स्थाई युद्धविराम और सत्ता के बंटवारे के लिए सीधी बातचीत होगी। इन मुद्दों को लेकर तालिबान और अफगानिस्तान की वर्तमान सरकार के बीच गंभीर मतभेद हैं।
तालिबान की मांग है कि अफगानिस्तान सरकार कैद में रखे गए उसके 5 हजार लड़ाकुओं को रिहा करे, लेकिन अफगान सरकार ने इसे खारिज कर दिया है। इस बीच तालिबान ने अफगान सरकार की उस मांग को खारिज कर दिया है, जिसमें उसने कहा था कि अंतर-अफगान वार्ता के दौरान देशभर में हिंसा को कम किया जाए। माना जा रहा है कि इस विवाद की जड़ US है। US ने तालिबान के साथ हुए समझौते के दस्तावेज में अलग भाषा और अफगान सरकार के साथ समझौते में अलग भाषा का प्रयोग किया है।