img

Up kiran,Digital Desk : उत्तराखंड के पहाड़ों से एक ऐसी खबर आ रही है जो किसी भी माता-पिता का दिल दुखा सकती है। चमोली और उत्तरकाशी जिलों में इन दिनों भालुओं का खौफ इस कदर फैला हुआ है कि लोगों का घर से निकलना मुहाल हो गया है। सबसे ज्यादा खतरा उन मासूम बच्चों पर मंडरा रहा है, जिन्हें हर सुबह जान हथेली पर रखकर स्कूल जाना पड़ता है।

आइए जानते हैं पहाड़ों की इस मुश्किल जिंदगी का हाल, एकदम आसान शब्दों में।

सीटी बजाते और शोर मचाते स्कूल जा रहे नौनिहाल

चमोली के ग्रामीण इलाकों, खास तौर पर गोपेश्वर, जोशीमठ (ज्योतिर्मठ) और पोखरी ब्लॉक में स्थिति बेहद डरावनी है। यहाँ बच्चे स्कूल बैग के साथ-साथ 'सीटी' (Whistle) भी रखते हैं।
जरा सोचिए, जिन बच्चों के हाथों में सिर्फ किताबें होनी चाहिए, वो जंगल के रास्ते में जोर-जोर से सीटियां बजाते और चिल्लाते हुए गुजरते हैं। ऐसा वो मस्ती में नहीं, बल्कि अपनी जान बचाने के लिए करते हैं, ताकि भालू शोर सुनकर दूर भाग जाए।

माता-पिता बच्चों को 'झुंड' में (ग्रुप बनाकर) भेजते हैं। जब तक बच्चा स्कूल से सुरक्षित घर वापस नहीं आ जाता, मां-बाप की सांसें अटकी रहती हैं। जनता इंटर कॉलेज बेमरू जाने के लिए बच्चों को 4-5 किलोमीटर जंगल के बीच से गुजरना पड़ता है।

50 से ज्यादा मवेशी बने शिकार, उत्तरकाशी में युवक घायल

थेंग गांव (जोशीमठ) का हाल तो और भी बुरा है। यहाँ भालुओं ने अब तक 50 से ज्यादा मवेशियों को मार डाला है। डर का माहौल ऐसा है कि खेती-बाड़ी करना भी मुश्किल हो रहा है।

उधर, उत्तरकाशी के रैथल गांव में गुरुवार की सुबह एक दिल दहला देने वाली घटना हुई। हरीश कुमार नाम के एक व्यक्ति सुबह पानी भरने गए थे। तभी झाड़ियों में छिपे भालू ने उन पर हमला कर दिया। भालू ने उनके चेहरे और सिर को बुरी तरह नोच डाला। ग्रामीणों ने शोर मचाकर बड़ी मुश्किल से उनकी जान बचाई। उन्हें इलाज के लिए हायर सेंटर रेफर किया गया है। आंकड़े डराने वाले हैं—पिछले 9 महीनों में यहां भालुओं के हमले में 2 लोगों की जान जा चुकी है और 12 घायल हुए हैं।

वन विभाग ने दी 'मिर्च जलाने' की सलाह

हालात को देखते हुए वन विभाग की टीमें रात में गश्त कर रही हैं। केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग के अधिकारियों ने ग्रामीणों को सलाह दी है कि वे अपने घरों के आसपास की झाड़ियां काट दें। साथ ही, भालू को भगाने के लिए सूखी मिर्च या मच्छर मारने वाली अगरबत्ती (कॉयल) जलाएं, क्योंकि भालू धुएं से दूर भागते हैं।
डीएम प्रशांत आर्य का कहना है कि विभाग को स्प्रे और ट्रैप कैमरे लगाने के लिए फंड दिया गया है, लेकिन सवाल यह है कि जब हमले बढ़ रहे हैं, तो अभी तक इंतज़ाम पुख्ता क्यों नहीं हुए?

पहाड़ की ये कड़वी हकीकत बताती है कि वहां शिक्षा पाने के लिए भी बच्चों को कितना बड़ा संघर्ष करना पड़ रहा है।