जब भी ईद की बात होती है, तो सबसे पहले जिक्र आता है ईद के चांद का। ईद का चांद रमजान के 30वें रोज़े के बाद ही दिखता है। इस चांद को देखकर ही ईद मनाई जाती है। हिजरी कैलेण्डर के अनुसार ईद साल में दो बार आती है। एक ईद ईद-उल-फितर के तौर पर मनाई जाती है जबकि दूसरी को कहा जाता है ईद-उल-जुहा। ईद-उल-फितर को महज ईद भी कहा जाता है। जबकि ईद-उल-जुहा को बकरीद के नाम से भी जाना जाता है।
ईद उसी दिन मनाई जाती है जिस दिन चांद नजर आता है। यही वजह है कि कई बार एक ही देश में अलग-अलग दिन ईद मनाई जा सकती है। जहां चांद पहले देखा जाता है, वहां ईद पहले मन जाती है। इस बात से यह स्पष्ट है कि ईद और चांद के बीच खास रिश्ता है।
ईद और चांद का रिश्ता: जब हज़रत मुहम्मद ने मक्का छोड़ कर मदीना के लिए कूच किया था
ईद-उल-फ़ितर हिजरी कैलंडर के दसवें महीने शव्वाल यानी शव्वाल उल-मुकरर्म की पहली तारीख को मनाई जाती है। हिजरी कैलेण्डर की शुरुआत इस्लाम की एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक घटना से मानी जाती है। वह घटना है हज़रत मुहम्मद द्वारा मक्का शहर से मदीना की ओर हिज्ऱत करने की अर्थात जब हज़रत मुहम्मद ने मक्का छोड़ कर मदीना के लिए कूच किया था।
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हिजरी कैलेण्डर चांद पर आधारित कैलेण्डर है। इस कैलेण्डर में हर महीना नया चांद देखकर ही शुरू माना जाता है। ठीक इसी तर्ज पर शव्वाल महीना भी ‘नया चांद’ देख कर ही शुरू होता है। हिजरी कैलेण्डर के मुताबिक रमजान के बाद आने वाला महीना होता है शव्वाल। ऐसे में जब तक शव्वाल का पहला चांद नजर नहीं आता रमजान के महीने को पूरा नहीं माना जाता।
शव्वाल का चांद नजर न आने पर माना जाता है कि रमजान का महीना मुकम्मल होने में अभी कमी है। इसी वजह से ईद अगले दिन या जब भी चांद नजर आए तब मनाई जाती है। आलिमों का कहना है कि चांद का दीदार होने के बाद ही ईद का ऐलान किया जाता है। जिस शख्स ने चांद देखा है वह उसकी गवाही देगा। चांद देखने वाले के साथ वह लोग भी शामिल होंगे जो गवाह के गवाह बनेंगे। तमाम पहलुओं के बाद उलमा ए कराम चांद का ऐलान करते हैं।
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