लखनऊ।। नगर निकाय चुनाव को लेकर बीजेपी में जहाँ एक ओर जश्न का माहौल है तो वहीँ दूसरी ओर जीत के आंकड़े कुछ और ही कहानी बयां कर रहे हैं। अपनी जीत के जिन परिणामों को लेकर भाजपा इतरा रही है , दरअसल जीत के ये आंकड़े बीजेपी को काफी चिंता में डालने वाले हैं। कहने को तो भाजपा ने 14 नगर निगमों में महापौर के पद जीत लिए हैं लेकिन भाजपा के लिये चिंतन की घड़ी है। नगर निकाय के चुनावों के वास्तविक आंकड़े सामने आने के बाद अब बहुत कुछ बदला बदला सा नजर आने लगा है।
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उतरप्रदेश में नगर निकाय में महापौर के 16 , नगर पालिका परिषद अध्यक्ष पद के 198 और नगर पंचायत अध्यक्ष के लिये 438 पदों पर चुनाव हुये थे। जिनमें से भाजपा ने 14 महापौर , 68 नगर पालिका परिषद अध्यक्ष और 100 नगर पंचायत अध्यक्ष के पदों पर ही जीत हासिल कर पायी है। वहीँ पार्षदों और सदस्यों के कुल 5,261 पदों में से भाजपा को सिर्फ 914 सीटें ही मिली हैं। शेष 4,303 सीटों पर दूसरे लोगों का कब्जा हो गया है।
आंकड़े बता रहे हैं कि इस निकाय चुनाव में सबसे अधिक सीटें निर्दलीय प्रत्याशियों ने जीतीं हैं। नगर निकाय के प्रमुख यानि 652 अध्यक्ष के पदों में से 224 पर निर्दलीय प्रत्याशियों ने बाजी मारी हैं। अब यदि इसे वोट प्रतिशत की नजर से देखें तो जिस बीजेपी को अभी पिछले विधानसभा के चुनाव में जहाँ 43 फीसद वोट मिले थे, वहीँ वह नगर निकाय के चुनाव में 30 फ़ीसदी से भी नीचे खिसक गयी है। निर्दलीय के पाले में 32 फीसद वोट चले गये हैं।
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इस चुनाव में महापौर की दो बड़ी सीटें जीत कर बहुजन समाज पार्टी ने सभी की नींद उड़ा उदा दी है। बीजेपी के गढ़ रहे मेरठ और अलीगढ जैसी सीटों पर बसपा की जीत के बहुत मायने है। इतना ही नहीं आगरा और झांसी में जिस तरह जोरदार टक्कर दी है उसने बीजेपी के रणनीतिकारों की नींद उड़ा कर रख दी है। पहली बार पार्टी बेस्ड हुए निकाय चुनाव में पश्चिमी यूपी में बसपा बहुत ताकतवर होकर उभरी है। नगर पालिका में भी वह कहीं-कहीं सपा के बराबर तो कहीं उससे भी आगे रही है।
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भाजपा के कद्दावर नेता और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मी शंकर बाजपेयी के शहर मेरठ में बीजेपी की हार बहुत कड़े सन्देश देती नजर आ रही है। बसपा प्रत्याशी सुनीता वर्मा ने 229,238 वोट पाकर जीत हासिल की। वहीँ बीजेपी प्रत्याशी कांता कर्दम को 204,397 वोट पाकर दूसरे नंबर पर रहीं। अलीगढ की सीट जो पहले से बीजेपी के पास थी,उसे बसपा के मोहम्मद फुरकान ने 125682 मत पाकर जीत ली। उन्होंने भाजपा उम्मीदवार को 10,445 मतों से हराया।
यहाँ सपा और कांग्रेस दोनों के प्रत्याशी मुकाबले में कहीं नहीं दिखे। पश्चिमी उत्तर में बाकी जगहों पर बसपा ने अच्छा प्रदर्शन किया। प्रदेश की 198 नगर पालिकाओं में से बसपा को 35 सीटें मिली जो सपा के 36 से मात्र एक कम है। पुरे प्रदेश में भाजपा को जहां भी कड़ी टक्कर मिली वो बसपा के उम्मीदवारों ने ही दी।
इन चुनावों में बसपा की इस जीत को देखकर ये अंदाजा लगाया जा सकता है कि पिछले विधानसभा चुनावों में मिली करारी शिकस्त के बाद पार्टी सुप्रीमो मायावती ने संगठन को चुस्त-दुरुस्त करने के लिये राज्यसभा से इस्तीफे का जो दांव चला था वो काम करता दिखायी पड़ रहा है। मौजूदा नगर निकाय चुनावों में जिन सीटों पर बसपा को हार का मुंह देखना पड़ा है वहां भी उसका प्रदर्शन बेहतर रहा।
गौरतलब है कि, राज्यसभा से इस्तीफा देने के बाद मायावती ने अपना ज्यादातर समय लगातार संगठन में लगाया। इसके लिए उन्होंने कई जगह पार्टी पदाधिकारियों को बदला है तो कई जगह पुराने और पार्टी के विश्वस्त चेहरों को दोबारा कमान सौंपी। संगठन के प्रति मायावती की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि, जिस समय उत्तर प्रदेश में निकाय चुनावों की मतगणना चल रही थी, उस दौरान वह राजस्थान में स्थानीय कार्यकर्ताओं को संबोधित कर रही थीं। यहाँ सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि बसपा की यह दमदार उपस्थिति तब सामने आयी है जब उसके दो कद्दावर कहे जाने वाले नेता स्वामी प्रसाद मौर्य तथा नसीमुद्दीन जैसे चेहरे माया साथ छोड़ चुके हैं।
दरअसल यूपी के साथ ही देशभर में दलितों के उत्पीड़न और उनके खिलाफ हुये तमाम तमाम मुद्दों को मायावती ने प्रमुखता से उठाया, इस दौरान मायावती के निशाने पर हर बार भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी ही रहे। दलित-अस्मिता के मुद्दे को मायावती ने पूरे जोर-शोर से तूल दिया, नतीजा ये रहा कि पहले लोकसभा और फिर विधानसभा चुनावों में उनका जो कोर-दलित वोट-बैंक हिंदुत्व के नाम पर बसपा से छिटककर बीजेपी के पाले में चला गया था, वो निकाय चुनावों में वापस लौटता हुआ दिखा।
विकल्प की तलाश में राह देख रहे मुस्लिम मतदाताओं के लिये मायावती के रूप में वह विकल्प दिख गया। जिन्होंने जहां-जहां बसपा के उम्मीदवार को मजबूत स्थिति में देखा वहां-वहां पूरी रणनीति के साथ उसके पक्ष में एकतरफा वोट किया। मेरठ में बसपा उम्मीदवार की जीत इसकी एक बानगी भर है। जहां बसपा प्रत्याशी को मुस्लिमों का लगभग एकतरफा समर्थन मिला, जबकि समाजवादी पार्टी की प्रत्याशी दीपू मनोठिया मात्र 46,530 वोट ही पास सकीं, वहीँ कांग्रेस को मात्र 29,201 वोट मिले। गौरतलब है कि इसी सीट पर पिछले निकाय चुनाव में सपा उम्मीदवार रफीक अंसारी को एक लाख से अधिक वोट मिले थे।
निकाय के चुनाव परिणामों ने बहुतों को आइना दिखाया है। सभी पार्टियों के दिग्गजों को इस चुनाव ने बहुत गंभीर ढंग से चेतावनी दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उप-मुख्यमंत्री केशव मौर्या,कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और रामगोपाल यादव तक के लिए यह चुनाव किसी चेतावनी से कम नहीं है। बीजेपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और वर्तमान डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्या की विधानसभा सीट सिराथू के सभी सीटों पर बीजेपी हार गयी। कौशाम्बी जिले की नगरपालिका से लगायत सभी सीटों पर बीजेपी को हार का मुंह देखना पड़ा है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गोरखपुर नगर निगम में जहाँ बीजेपी को पूर्ण बहुमत नहीं मिल सका है वहीँ जिस बूथ सीएम योगी ने स्वयं मतदान किया, वहां से बीजेपी की बुरी हार हुई। वार्ड संख्या-68 (पुराना गोरखपुर) में वोटर हैं। यहाँ निर्दलीय उम्मीदवार नादरा खातून ने भाजपा की उम्मीदवार माया त्रिपाठी को 462 वोटों के बड़े अंतर् से हराया। निर्दलीय उम्मीदवार नादरा खातून ने 1783 वोट मिले जबकि भाजपा प्रत्याशी माया त्रिपाठी को मात्र 1321 वोट मिले है। हालाँकि सीएम योगी के गढ़ गोरखपुर में मेयर के पद पर बीजेपी ने लगातार तीसरी बार जीत दर्ज की।
भाजपा के मेयर प्रत्याशी सीताराम जायसवाल ने 75823 वोटों के अंतर से सपा के राहुल गुप्ता को पराजित किया है। वहीं, गोरखपुर नगर निगम के 70 वार्डों में से बीजेपी ने 27, सपा को 17, निर्दलीय को 18, बीएसपी को 5 और कांग्रेस को 3 सीट मिली है।
श्रीकांत शर्मा के मथुरा नगर निगम में भाजपा प्रत्याशी मुकेश आर्य बन्धु ने कांग्रेस के मोहन सिंह को 22195 वोटों से हराया। मुकेश आर्य बन्धु को 103021 वोट मिले और कांग्रेस उम्मीदवार मोहन सिंह 80896 वोट मिले। बसपा के गोवर्धन सिंह को मात्र 32641 वोट मिले। सपा से श्याम मुरारी चौहान को 11139 वोटों से ही संतोष करना पड़ा। वहीँ आप के गणेश माहौर 5894 वोट मिले हैं। 70 वार्डों वाले मथुरा वृन्दावन नगर निगम में 40 वार्डों पर भाजपा , कांग्रेस को 9, सपा को 2, बसपा को 3, लोकदल को 2 और निर्दलीय को 8 सीट पर सफलता मिली है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लोकसभा क्षेत्र वाराणसी में भी बीजेपी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला है। कुल 90 में से बीजेपी को यहाँ मात्र 37 सीट ही मिली हैं।वाराणसी नगर निगम में मेयर के पद पर भाजपा की मृदुला जायसवाल ने जीत हासिल की है। 90 सीट वाले वाराणसी नगर निगम में इस बार 89 सीटों पर ही वोटिंग हुई । वार्ड नंबर-28 चेतगंज से कांग्रेस के पार्षद उम्मीदवार की मृत्यु की वजह से सीट खाली रही। 37 सीटों पर भाजपा, 17 सीटों पर सपा, 22 सीटों पर कांग्रेस, 2 सीट बसपा और एक सीट आम आदमी पार्टी को मिली है।
सोनिया गाँधी की रायबरेली नगर पालिका से कांग्रेस की पूर्णिमा श्रीवास्तव ने 4006 वोटों से जीत हासिल की है। पूर्णिमा श्रीवास्तव को 22535 वोट मिले। जबकि सपा की नसरीन बानो को 18529 वोट मिले हैं। भाजपा की सोनिया रस्तोगी को 14713 वोट मिले। एलजेपी की किन्नर पूनम को 7781 वोट मिले हैं। 34 वार्ड में से 31 पर निर्दलियों ने जीत दर्ज की है। जबकि 2 सीट भाजपा के पास है। एक आम आदमी पार्टी के पास है।
राहुल गाँधी के अमेठी क्षेत्र में पड़ने वाली दो नगर पालिकाओं में जायस सीट भाजपा के पास है, जबकि गौरीगंज नगर पालिका समाजवादी पार्टी के पास है। जायस नगर पालिका में भाजपा के महेश सोनकर को 3461 वोट मिला। गौरीगंज नगर पालिका सीट पर सपा की राजपति पासी ने 1404 वोटों के अंतर से जीत दर्ज की है।
शिवपाल यादव की विधानसभा सीट जसवंत नगर में निर्दलीय उम्मीदवार सुनील जॉली ने चुनाव जीत लिया है। सुनील को शिवपाल यादव ने सपोर्ट किया था। उन्हें 4367 वोट मिले, जबकि सपा के सत्यनारायण वाले 4244 वोट मिले। सुनील जॉली ने 123 वोटों से जीत दर्ज की है। सुनील जॉली की इस जीत ने सपा आलाकमान को बता दिया है कि उनकी पकड़ जमीनी स्तर पर अब भी मजबूत है। अपने विधानसभा-क्षेत्र जसवंत नगर में अपने बूते उलट-फेर करने में सक्षम हैं। यहाँ अखिलेश की नहीं चली। फिरोजाबाद में भी समाजवादी पार्टी को जोरदार झटका लगा जहा से रामगोपाल के बेटे अक्षय यादव आते है।
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