Makar Sankranti. भारतीय संस्कृति उत्सवधर्मी है। सनातन धर्मावलंबियों का जीवन ही उत्सव है। वेदों-शास्त्रों में उत्सव है। जीवन का प्रत्येक संस्कार उत्सव है। वैदिक समाज खेतिहर समाज था। प्रकृति से उसका अभिन्न नाता था। सूर्य, चन्द्रमा समेत सभी ग्रहों, नक्षत्रों, राशियों और ऋतुओं से उसका गहरा संबंध था। इसीलिए तो यहां के सभी पर्व और उत्सव सीधे प्रकृति से जुड़े हुए हैं। महत्वपूर्ण तथ्य है की हमारे पूर्वज महान कार्य जप-तप आदि इन अनूठे पर्वों के अवसर पर प्रारंभ और उसका समापन करते थे।
यह परंपरा बदले हुए स्वरूपों में आज भी जीवंत है। प्रत्येक पर्व और उसके पीछे की कथा हमे सद्मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती है। इसीलिए तो पर्वों और उत्सवों पर कथा श्रवण की पवित्र परंपरा है। आज भी लोग पर्वों पर अपने पुरोहित से कथा सुनते हैं और प्रसाद का वितरण करते हैं।(Makar Sankranti)
ऐसे ही पर्वों में एक प्रमुख पर्व है मकर संक्रांति (Makar Sankranti)। मकर संक्रांति भगवान सूर्य को समर्पित भारतवर्ष का महान पर्व है। दुनिया के लोगों के लिए सूर्य एक प्राकृतिक तत्व या एक महत्वपूर्ण ग्रह है, पर भारतवर्ष में सूर्य को जीवनदाता के रूप में पूजा जाता है। जीवनदाता इसलिए क्योंकि सूर्य ऊर्जा और प्राण का स्रोत है, जिसके बिना जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती। सूर्य का प्रकाश जीवन का प्रतीक है और चन्द्रमा भी सूर्य के प्रकाश से आलोकित है। सूर्य अनुशासन, प्रामाणिकता, गति, संतुलन और निरंतरता का महान आदर्श है। इसलिए सनातन उपासना पद्धति में सूर्य की आराधना का विशेष महत्व है। ‘मकर संक्रांति’ इसी आराधना का महत्वपूर्ण उत्सव है।
भारतीय काल गणना के अनुसार वर्ष में बारह संक्रांतियां होती हैं, जिसमें ‘मकर संक्रांति’ (Makar Sankranti) का महत्व सर्वाधिक है। इस दिन से सूर्य मकर राशि में प्रवेश करने लगता है, इसलिए इसे मकर संक्रांति कहते हैं। इस दिन से सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण ( दक्षिणी गोलार्ध से उत्तरी गोलार्ध ) में गति करने लगता है, इसलिए इसे सौरमास भी कहते हैं। इसी दिन से सौर नववर्ष भी प्रारंभ होता है। इस पावन अवसर पर लोग पवित्र नदियों एवं तीर्थ स्थलों पर स्नान कर भगवान सूर्य की आराधना करते हैं।
सूर्य आराधना का यह पर्व भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। भारत के विभिन्न प्रांतों में इस त्यौहार को मनाए जाने के ढंग में भी भिन्नता है, लेकिन उत्सव का मूल हेतु सूर्य की आराधना करना ही है। मकर सक्रांति को तिल संक्रांति, पोंगल एवं पतंग उत्सव आदि नामों से भी जाना जाता है। इस दिन तिल-गुड़ खाने-खिलाने, सूर्य को अर्ध्य देने और पतंग उड़ाने की परंपरा है। इस दिन दान की विशेष महत्ता है। मकर संक्रांति (Makar Sankranti) से दिन भी धीरे-धीरे बड़ा होने लगता है और तेज धुप व सुगन्धित पवन ऋतुराज बसंत के शुभागमन का संकेत देने लगता है।
मकर संक्रांति से अनेक पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं। शास्त्रों के अनुसार मकर संक्रांति के दिन भगवान सूर्य धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं और मकर राशि के स्वामी शनि देव हैं, जो सूर्य पुत्र होते हुए भी सूर्य से शत्रु भाव रखते हैं। अतः शनिदेव के घर में सूर्य की उपस्थिति के दौरान शनि उन्हें कष्ट न दें, इसलिए तिल का दान और सेवन मकर संक्रांति के दिन किया जाता है। शनिदेव चूंकि मकर राशि के स्वामी हैं, इसलिए इस दिन को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है।(Makar Sankranti)
पौराणिक कथाओं के अनुसार माघ मास में जो व्यक्ति नित्य भगवान विष्णु की पूजा तिल से करता है, उसके समस्त दुःख दूर हो जाते हैं। यह भी मान्यता है कि मके संक्रांति (Makar Sankranti) के दिन गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम स्थल प्रयाग में समस्त देवी-देवता अपना स्वरूप बदलकर स्नान के लिए आते हैं। इसलिए इस दिन दान, तप, जप का विशेष महत्त्व है। कहा जाता है कि इस दिन गंगा स्नान करने से सभी कष्टों का निवारण हो जाता है। कहा जाता है कि सभी देवी-देवता, यक्ष, गंधर्व, नाग, किन्नर आदि इस अवधि के मध्य तीर्थराज प्रयाग में एकत्रित होकर संगम तट पर स्नान करते हैं। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस में लिखा है कि –
एक अन्य कथा के अनुसार मकर संक्रांति (Makar Sankranti) के दिन ही पतित पावनी गंगाजी भागीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होते हुए आगे बढ़ी थी। एक अन्य कथा के अनुसार गंगा को धरती पर लानेवाले महाराज भगीरथ ने अपने पूर्वजों के लिए इसीदिन तर्पण किया था। उनका तर्पण स्वीकार करने के बाद मकर संक्रांति के ही दिन गंगा समुद्र में जाकर मिल गई थी। इसलिए मकर संक्रांति पर गंगा सागर में विराट मेला लगता है। मकर संक्रांति के दिन श्रद्धालु गंगा सागर में डुबकी लगाकते हैं और पितरों का तर्पण भी करते हैं। सनातन मान्यता है कि व्यक्ति को जीवन में एकबार मकर संक्रांति के दिन गंगा सागर में अवश्य डुबकी लगानी चाहिए।
महाभारत की कथा के अनुसार पितामह भीष्म ने अपनी शरीर त्यागने के लिए मकर संक्रांति के दिन प्रतीक्षा करते रहे और जब इस दिन सूर्य उत्तरायण हुए तो उन्होंने अपने प्राण का त्याग किया था। एक अन्य कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने इसी दिन असुरों का संहार कर युद्ध समाप्ति की घोषणा की थी। इस प्रकार यह दिन बुराइयों को समाप्त करने का दिन भी माना जाता है। लोक मान्यताओं के अनुसार माता यशोदा ने जब पुत्र प्राप्ति के लिए व्रत किया था, तब सूर्य उत्तरायण काल में पदार्पण कर रहे थे और उस दिन मकर संक्रांति थी। माता यशोदा की मनोकामना पूर्ण हुई और उन्हें कृष्ण जैसे सुपुत्र की प्राप्ति हुई। लोक अनुश्रृतियों के अनुसार तभी से मकर संक्रांति व्रत का प्रचलन हुआ।(Makar Sankranti)
मकर संक्रांति (Makar Sankranti) पर्व पर लोग पवित्र नदियों में स्नान कर सूर्य पूजा करते हैं और उत्पन्न हुई खरीफ की फसल के लिए ईश्वर का धन्यवाद और भावी रबी की अच्छी फसल के लिए निवेदन करने के ही साथ दान-पुण्य भी करते हैं। उत्पन्न हुए अन्न से प्रसाद बनाकर लोगों में वितरित करते हैं। इस दिन कृषक समाज के लोग दान देने के लिए उतावले रहते हैं। इसीलिए हम इसे फसलों का पर्व या खेतिहर समाज पर्व भी कहते हैं। आज भी मकर संक्रांति पर ग्रामीण क्षेत्रों में गजब का उत्साह दिखता है।
सूर्यदेव के उत्तरायण होने अर्थात मकर राशि में प्रवेश करने के साथ ही देवताओं के दिन और पितरों की रात्रि का शुभारंभ होता है। इसके साथ ही सभी प्रकार के मांगलिक कार्य, यज्ञोपवीत, विवाह, गृहप्रवेश आदि मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाते हैं। वैज्ञानिक दृष्टि से भी देखें तो सूर्य का मकर राशि में प्रवेश पृथ्वी वासियों के लिए वरदान की तरह है। ठंड से व्याकुल मन को सूर्य की रश्मियों से अद्भुत सुख मिलता है। प्रकृति बिहंसने लगती है। सरसों की मादक गंध से प्रकृति में यौवन का संचार होता है। हर तरफ आनंद ही आनंद।(Makar Sankranti)
भारतीय भोजन परंपरा में खिचड़ी एक संस्कृति है, पर्व है। आतिथ्य संस्कार है। सादगी की सूघड़ परंपरा है। मकर संक्रांति के पर्व पर खिचड़ी बनाने, खाने और खिलाने का खास महत्व है। इसीलिए इस पर्व को खिचड़ी पर्व भी कहा जाता है। इस अवसर पर चावल, काली दाल, नमक, हल्दी, मटर और सब्जियां खासतौर से फूलगोभी पालक आदि डालकर खिचड़ी बनाई जाती है। इसमें चावल को चंद्रमा का, काली दाल को शनि का और हरी सब्जियों को बुध का प्रतीक माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार खिचड़ी की गर्मी व्यक्ति को मंगल और सूर्य से जोड़ती है। ज्योतिष के अनुसार मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी खाने से कुंडली में ग्रहों की स्थिति मजबूत होती है।(Makar Sankranti)
पुराणों के अनुसार मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी बनाने की परंपरा का आरंभ भगवान शिव ने किया था। भगवान शिव ने खिचड़ी बनाई थी और भगवान विष्णु ने उसे खाया था और इस भोजन को स्वादिष्ट के साथ ही सुपाच्य बताया था। इसलिए यह सनातन मतावलंबियों का प्रमुख लोकपर्व बन गया। खिचड़ी भगवान जगन्नाथ के 56 भोग में भी शामिल है।(Makar Sankranti)
जनश्रुतियों के अनुसार खिचड़ी पर्व का प्रारंभ उत्तर प्रदेश के गोरखपुर से हुआ था। बाबा गोरखनाथ जी भगवान शिव के अवतार थे और उन्होंने ही खिचड़ी को भोजन के रूप में प्रचलित किया। इसके पीछे भी एक दिलचस्प कथा है। इस कथा के अनुसार 13 वीं शताब्दी के अंत में खिलजियों के हमलों से देश-समाज आक्रान्त था। उस समय के नाथ योगी उनका डट कर मुकाबला कर रहे थे। उनका पूरा समय खिलजी सेना से ही जूझने में व्यतीत हो जाता था। उन्हें भोजन बनाने और उसे ग्रहण करने का समय भी नहीं मिल पाता था, जिससे उन्हें भूखे ही लड़ना पड़ता था और वे निरंतर कमजोर होते जा रहे थे। अब कमजोर शरीर से नाथपंथी खिलजी सेना का कैसे मुकाबला करते ? इसका समाधान ढूंढा जाने लगा।
एक दिन बाबा गोरखनाथ ने अपने अपने योगी शिष्यों को पास बुलाया और आवश्यक विमर्श करने के बाद उन्हें दाल, चावल और सब्जी को एक साथ पकाने को कहा। शिष्यों ने वैसा ही किया। देखते ही देखतेएक ऐसा व्यंजन तैयार हुआ जो अल्प समय में ही तैयार हो गया। यह व्यंजन स्वाद व सुगंध के साथ पौष्टिक भी था। इसे खाने से नाथ योगी अपने भीतर ऊर्जा और ताजगी महसूस कर रहे थे। बाबा गोरखनाथ ने इस व्यंजन का नाम ‘खिचड़ी’ रखा। इस तरह नाथ योगियों ने बहादुरी से लड़कर समाज को खिलजियों के आतंक से बचाया। इसीलिए गोरखपुर में मकर संक्रांति को विजय दर्शन पर्व के रूप में भी मनाया जाता है।(Makar Sankranti)
भारतीय सांस्कृतिक परंपरा में प्रायः सभी पर्वों पर मेलों का आयोजन होता है। मकर संक्रांति (Makar Sankranti) के दिन भी पूरे देश में जगह-जगह पर खिचड़ी मेला लगता है। लेकिन गोरखपुर और गंगा सागर में लगने वाले खिचड़ी मेले का विशेष महत्व है। गोरखपुर स्थित गोरक्षनाथ मंदिर परिसर में एक माह तक खिचड़ी मेला चलता है। इस मेले में देश और दुनिया के विभिन्न देशों से लाखों लोग शामिल होते हैं। योगी आदित्यनाथ ( गोरक्ष पीठ के पीठाधीस्वर ) के उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने के बाद गोरखपुर में खिचड़ी मेला और भी वृहद हो गया है। इसी तर्ज पर गंगा सागर, बक्सर समेत पुरे भारत में खिचड़ी मेले का आयोजन उत्साह के साथ होता है।
खिचड़ी सुपाच्य एवं स्वास्थ्यवर्धक भोग है। स्वास्थ्य खराब होने परभी खिचड़ी की शरण में ही सभी को जाना पड़ता है। खिचड़ी ऐसे ही छप्पन भोग में शामिल नहीं है, इसका अपना एक समृद्ध इतिहास रहा है। दाल-चावल तो मुख्य सामग्री है ही, लेकिन इसमें जो जी चाहे डाल कर पकाइए, खिचड़ी सभी को अपने में समाहित कर लेती है। यह एकता का प्रतीक है। भारत में विभिन्न प्रकार की खिचड़ी बनाई और खाई जाती है। जैसे गुजरात की राम खिचड़ी, महाराष्ट्र की वलाची खिचड़ी, आंध्रप्रदेश की दक्खिनी खिचड़ी, कर्नाटक-तमिलनाडु की बेसीभिली भात या राजस्थान का बाजरे का खिचड़ा। सभी के नाम, स्वाद और सुगंध भी भिन्न है।(Makar Sankranti)