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Up kiran,Digital Desk : हम सभी फिल्में क्यों देखते हैं? एंटरटेनमेंट के लिए, है न? और जब किसी फिल्म में हमारे पसंदीदा सुपरस्टार्स हों, म्यूजिक शानदार हो और ट्रेलर देखकर लगे कि वीएफएक्स (VFX) हॉलीवुड लेवल का है, तो हम मान लेते हैं कि यह फिल्म तो 'ब्लॉकबस्टर' होगी ही। लेकिन बॉलीवुड का इतिहास गवाह है कि कई बार ये सारी उम्मीदें धराशायी हो जाती हैं।

आज बात उन फिल्मों की, जिनमें सब कुछ था—पैसा, पॉवर और परफॉरमेंस—लेकिन फिर भी थिएटर की कुर्सियां खाली रह गईं। आइए एक नजर डालते हैं कि आखिर गलती कहां हुई।

जब बड़े नाम भी नहीं आए काम

अक्सर देखा गया है कि मेकर्स सोचते हैं कि अगर उन्होंने दो-तीन बड़े सुपरस्टार्स को एक फ्रेम में खड़ा कर दिया, तो पब्लिक खिंची चली आएगी। उदाहरण के लिए, जब आमिर खान और अमिताभ बच्चन जैसे दिग्गज पहली बार 'ठग्स ऑफ हिंदोस्तान' के लिए साथ आए, तो सबको लगा इतिहास रचा जाएगा। पानी की तरह पैसा बहाया गया, विजुअल्स भी ठीक-ठाक थे, लेकिन फिल्म की कहानी इतनी कमजोर थी कि दर्शकों ने पहले वीकेंड के बाद ही इसे नकार दिया। लोगों ने कहा—"सितारे तो चमक रहे थे, पर कहानी में अंधेरा था।"

खूबसूरत सेट्स, लेकिन बेजान कहानी

कुछ फिल्में ऐसी होती हैं जो देखने में किसी पेंटिंग से कम नहीं लगतीं। करण जौहर की 'कलंक' इसका सटीक उदाहरण है। वरुण धवन, आलिया भट्ट, माधुरी दीक्षित और संजय दत्त—कास्ट ऐसी कि किसी को भी जलन हो जाए। सेट ऐसे कि आंखें फटी रह जाएं और म्यूजिक भी रूह को सुकून देने वाला। लेकिन जब फिल्म रिलीज हुई, तो दर्शक कनेक्ट ही नहीं कर पाए। वजह थी- फिल्म की लंबाई और उलझी हुई कहानी। यह साबित हो गया कि आप स्क्रीन को कितना भी सजा लें, अगर इमोशन असली नहीं हैं, तो फिल्म नहीं चलेगी।

यही हाल रणबीर कपूर की 'बॉम्बे वेलवेट' का हुआ था। अनुराग कश्यप ने उस दौर का मुंबई बनाने में जान लगा दी थी, म्यूजिक और विजुअल्स भी शानदार थे। लेकिन आम दर्शक उस डार्क स्टोरीलाइन से जुड़ ही नहीं सके और फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बहुत बुरी तरह लुढ़क गई।

प्रयोग जो भारी पड़ गए

शाहरुख खान जैसे सुपरस्टार ने जब 'जीरो' में एक बौने का किरदार निभाया, तो यह बहुत बड़ा रिस्क था। पहले हाफ में सब ठीक लगा, वीएफएक्स की तो दुनिया भर में तारीफ हुई। कैटरीना और अनुष्का जैसी अभिनेत्रियां भी थीं। लेकिन दूसरे हाफ में फिल्म जैसे ही स्पेस (अंतरिक्ष) में गई, लॉजिक कहीं खो गया। आलोचकों और दर्शकों दोनों को लगा कि अच्छे कांसेप्ट को खराब लेखन ने बर्बाद कर दिया।

कुछ ऐसा ही सलमान खान की 'ट्यूबलाइट' के साथ हुआ। लोगों को भाईजान का एक्शन पसंद है, लेकिन इस इमोशनल ड्रामा को फैंस पचा नहीं पाए।

सीख: 'कंटेंट' ही असली राजा है

इन फिल्मों का हश्र हमें एक ही बात सिखाता है—आज का दर्शक बहुत स्मार्ट है। उसे आप सिर्फ बड़े चेहरों, विदेशी लोकेशन्स या भारी-भरकम विजुअल्स से बेवकूफ नहीं बना सकते। फिल्म का दिल उसकी 'कहानी' (Script) होती है। अगर कहानी में दम है, तो छोटे बजट की फिल्में (जैसे 'स्त्री' या 'बधाई हो') भी 100 करोड़ कमा लेती हैं, और अगर कहानी में दम नहीं, तो 500 करोड़ का बजट भी फिल्म को डूबने से नहीं बचा पाता।