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Up kiran,Digital Desk : यह आपके लिए भारत के नए श्रम सुधारों और कामगारों के हितों पर आधारित एक नेचुरल, मानवीय और कन्वर्सेशनल स्टाइल में लिखा गया आर्टिकल है। इसे आम बोलचाल की भाषा में समझाया गया है ताकि पाठक खुद को इससे जोड़ सकें।

हम अक्सर टीवी और अखबारों में 'विकसित भारत' के सपने की बात सुनते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि यह सपना हकीकत में कैसे बदलेगा? ऊंची इमारतों या हाई-स्पीड ट्रेनों से ज्यादा यह देश तब आगे बढ़ेगा, जब इसे बनाने वाला मजदूर और कामगार रात को सुकून की नींद सो सकेगा। कामगारों और इंडस्ट्री के बीच का भरोसा ही हमारी अर्थव्यवस्था का असली इंजन है।

लंबे समय से हमारे देश में ऐसे पुराने कानून चल रहे थे, जो आज के जमाने में फिट नहीं बैठते थे। सरकारी आंकड़े भी बताते हैं कि मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में उतनी नौकरियां पैदा नहीं हुईं जितनी होनी चाहिए थीं। वजह? पुराने और उलझे हुए नियम। लेकिन अब वक्त बदल रहा है और भारतीय मजदूर संघ (BMS) जैसे संगठन भी मानते हैं कि नई 'श्रम संहिताएं' (Labour Codes) मजदूरों की जिंदगी में एक नई सुबह लेकर आ रही हैं।

 सबको मिलेगा न्यूनतम वेतन और सम्मान (वेतन संहिता - 2019)

सबसे बड़ा बदलाव आपकी जेब से जुड़ा है। पहले देश के सिर्फ 10% मजदूर ही सही वेतन कानून के दायरे में आते थे, लेकिन अब 'न्यूनतम वेतन' (Minimum Wage) हर कामगार का अधिकार होगा। सरकार एक 'फ्लोर वेज' तय करेगी, जिससे कम वेतन पूरे भारत में कोई मालिक नहीं दे सकेगा।
इसके अलावा, यह कानून महिलाओं को भी बराबरी का दर्जा देता है—यानी समान काम के लिए पुरुषों के बराबर वेतन। और सबसे अच्छी बात—अगर आप ओवरटाइम करेंगे, तो अब आपको उसका 'दोगुना पैसा' मिलने की गारंटी होगी।

डिजिटल दुनिया के नए मजदूरों (Gig Workers) की सुरक्षा

आजकल हम ऑनलाइन खाना ऑर्डर करते हैं या एप से कैब बुलाते हैं। इन डिलीवरी बॉयज और ड्राइवर्स (गिग वर्कर्स) के बारे में पहले किसी ने नहीं सोचा था। 'सामाजिक सुरक्षा संहिता' पहली बार इनको कानूनी पहचान दे रही है।
अब एग्रीगेटर्स (कंपनियों) को अपनी कमाई का कुछ हिस्सा देना होगा, जिससे इन गिग वर्कर्स के लिए एक सोशल सिक्योरिटी फंड बनेगा। यानी, एप पर काम करने वालों का भविष्य भी अब सुरक्षित होगा।

 काम की जगह पर सेहत की गारंटी

'जान है तो जहान है'—यह नया कानून इसी बात को पक्का करता है। अब खतरनाक फैक्ट्रियों या जोखिम भरे इलाकों में काम करने वाले मजदूरों को 100% हेल्थ सुरक्षा मिलेगी।
अगर आपकी उम्र 40 साल से ज्यादा है, तो साल में एक बार 'मुफ्त हेल्थ चेकअप' पाना आपका हक़ होगा। इसके अलावा, जो प्रवासी मजदूर अपना घर छोड़कर दूसरे राज्यों में पेट पालने जाते हैं, उन्हें घर जाने के लिए 'यात्रा भत्ता' मिलेगा और राशन की दिक्कत न हो, इसके लिए पोर्टेबिलिटी की सुविधा भी मिलेगी।

नौकरी पक्की और ग्रेच्युटी का फायदा

पहले ठेका मजदूरों (Contract Workers) को न कोई कागज मिलता था, न कोई सबूत। लेकिन 'औद्योगिक संबंध संहिता' के तहत अब कंपनियों को हर कर्मचारी को 'नियुक्ति पत्र' (Appointment Letter) देना ही होगा।
एक और बड़ी खुशखबरी—पहले ग्रेच्युटी पाने के लिए 5 साल इंतज़ार करना पड़ता था। अब ठेका मजदूरों के लिए 'फिक्स्ड टर्म एंप्लॉयमेंट' के तहत अगर आपने 1 साल भी सेवा दी है, तो आपको ग्रेच्युटी का लाभ मिलेगा। शिकायतों के निपटारे के लिए भी सिस्टम अब तेज और आसान होगा।

सही दिशा में बढ़ते कदम

ये चारों लेबर कोड सिर्फ कागजी बदलाव नहीं हैं, बल्कि यह भारत की 'काम करने की संस्कृति' को सुधारने का एक बड़ा कदम हैं। इससे 'ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस' के साथ-साथ मजदूरों की 'ईज़ ऑफ लिविंग' (जीवन जीने में आसानी) भी बढ़ेगी। जब मजदूर को सुरक्षा और सम्मान मिलेगा, तभी तो भारत सही मायनों में 'विश्व गुरु' बनने की राह पर आगे बढ़ेगा।