UP Information Department advertisement scam, लखनऊ। सूचना महकमे के घोटालों का जिन्न बोतल से बाहर आ चुका है। सरकारी दस्तावेजों में लिखा पढी की चीख चीख-चीखकर इसकी गवाही दे रही है। भले ही जारी पड़तालों की चीख-पुकार उत्तर प्रदेश के हुक्मरानों के कानों तक पहुंचकर दम तोड़ रही है, पर सूचना महकमे के जाज्वल्यमान इतिहास में दर्ज हो रही है। इन गुनाहों के छानबीन में दूध का दूध और पानी का पानी करने के लिए हजरतगंज पुलिस की तरफ से सूचना निदेशक को पत्र भेजा गया है, जवाब न मिलने पर रिमाइंडर भी भेजा जा रहा है। जांच के लिए पत्र जारी होने और रिमाइंडर मिलने के बाद भी शासन के आला ओहदेदारों का मौन टूटता है, या नहीं? यह देखने वाली बात होगी। अन्य महकमों की तरह सूचना विभाग के आला अफसरों पर कार्रवाई होती है या नहीं? यह विवेचना का विषय भी हो सकता है और भविष्य के लिए नजीर भी साबित हो सकता है।
क्या है पूरा मामला?
दरअसल, सूचना विभाग में बेधड़क चल रहे घपले घोटालों को लेकर शिकायत दर्ज करायी गयी थी। शिकायत में उन दो न्यूज चैनलों को लाखों रुपये के विज्ञापन जारी करने की बात ही गयी है, जिनकी चार वर्षों तक डीएवीपी नहीं हुई थी। फिर भी उन्हें धुआंधार विज्ञापन जारी कर दिया गया। सूचना विभाग से जब आरटीआई के तहत सूचना मांगी गयी तो उनकी तरफ से बताया गया कि यह दोनों ही चैनल बी और सी वर्ग में सूचीबद्ध हैं। जबकि इन दोनों वर्गों में सूचीबद्धता के पहले डीएवीपी में सूचीबद्धता अनिवार्य है। इस आधार पर इन दोनों चैनलों को विज्ञापन देने के लिए गलत इलेक्ट्रानिक रिकार्ड बनाए गए और उन चैनलों से सरकारी विभाग ने करार कर जालसाजी, धोखाधड़ी, आपराधिक न्यास भंग और सरकारी धन के गबन और लूट का आरोप लगाया गया है। (UP Information Department advertisement scam)
प्रथम दृष्टया आरोप संगीन
देखा जाए तो प्रथम दृष्टया आरोप संगीन हैं। इन संगीन आरोपों की जांच भी हजरतगंज पुलिस कर रही है। एसआई राकेश कुमार की तरफ से सूचना निदेशक को दो बार आख्या के लिए पत्र भी भेजा गया है। पर सूचना निदेशक की तरफ से अभी तक पुलिस को कोई जवाब नहीं दिया गया है। वहीं इस मामले में जब निदेशक सूचना से जानकारी चाही गई तो उनका कहना था कि कल दिखवा के जवाब जायेगा। (UP Information Department advertisement scam)
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