बढ़ती महंगाई से चिंतित भारतीय रिजर्व बैंक रेपो रेट में 0.50% इजाफा कर सकता है। इससे रेपो रेट 4.90% से बढ़कर 5.40% हो जाएगा। यानी होम लोन से लेकर ऑटो और पर्सनल लोन सब कुछ महंगा होने वाला है और आपको ज्यादा EMI चुकानी होगी। ब्याज दरों पर फैसले के लिए 3 अगस्त से मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी की मीटिंग चल रही है। RBI गवर्नर शक्तिकांत दास ने शुक्रवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में ब्याज दरों पर लिए फैसलों की जानकारी देंगे।
रेपो रेट का EMI कनेक्शन
रेपो रेट वो दर होती है जिस पर RBI से बैंकों को कर्ज मिलता है, जबकि रिवर्स रेपो रेट उस दर को कहते है जिस दर पर बैंकों को RBI पैसा रखने पर ब्याज देती है। अभी यह 3.35% है। जब RBI रेपो रेट घटाता है, तो बैंक भी ग्राहकों के लिए ब्याज दरों को कम करते हैं। इससे EMI भी घटती है। इसी तरह जब रेपो रेट में बढ़ोतरी होती है, तो ब्याज दरों में बढ़ोतरी के कारण ग्राहक के लिए कर्ज महंगा हो जाता है।
0.50% रेट बढ़ने से कितना फर्क पड़ेगा
मान लीजिए रोहित नाम के एक व्यक्ति ने 7.55% के रेट पर 20 साल के लिए 30 लाख रुपए का हाउस लोन लिया है। उसकी लोन की EMI 24,260 रुपए है। 20 साल में उसे इस दर से 28,22,304 रुपए का ब्याज देना होगा। यानी, उसे 30 लाख के बदले कुल 58,22,304 रुपए चुकाने होंगे।
आकाश के लोन लेने के एक महीने बाद RBI रेपो रेट में 0.50% का इजाफा कर देता है। इस कारण बैंक भी 0.50% ब्याज दर बढ़ा देते हैं। अब जब रोहित का एक दोस्त उसी बैंक में लोन लेने के लिए पहुंचता है तो बैंक उसे 7.55% की जगह 8.05% रेट ऑफ इंटरेस्ट बताता है।
आकाश का दोस्त भी 30 लाख रुपए का ही लोन 20 साल के लिए लेता है, लेकिन उसकी EMI 25,187 रुपए की बनती है। यानी रोहित की EMI से 927 रुपए ज्यादा। इस वजह से रोहित के दोस्त को 20 सालों में कुल 60,44,793 रुपए चुकाने होंगे। ये रोहित की रकम से 2,22,489 ज्यादा है।
क्या पहले से चल रहे लोन पर भी बढ़ेगी EMI
होम लोन की ब्याज दरें 2 तरह से होती हैं पहली फ्लोटर और दूसरी फ्लेक्सिबल। फ्लोटर में आपके लोन कि ब्याज दर शुरू से आखिर तक एक जैसी रहती है। इस पर रेपो रेट में बदलाव का कोई फर्क नहीं पड़ता। वहीं फ्लेक्सिबल ब्याज दर लेने पर रेपो रेट में बदलाव का आपके लोन की ब्याज दर पर भी फर्क पड़ता है। ऐसे में अगर आपने पहले से फ्लेक्सिबल ब्याज दर पर लोन ले रखा है तो आपके लोन की EMI भी बढ़ जाएगी।
इस साल दो बार बढ़ चुकी है दर
मॉनेटरी पॉलिसी की मीटिंग हर दो महीने में होती है। इस वित्त वर्ष की पहली मीटिंग अप्रैल में हुई थी। तब RBI ने रेपो रेट को 4% पर स्थिर रखा था। लेकिन RBI ने 2 और 3 मई को इमरजेंसी मीटिंग बुलाकर रेपो रेट को 0.40% बढ़ाकर 4.40% कर दिया था। 22 मई 2020 के बाद रेपो रेट में ये बदलाव हुआ था। इस वित्त वर्ष की पहली मीटिंग 6-8 अप्रैल को हुई थी। इसके बाद 6 से 8 जून को हुई मॉनेटरी पॉलिसी मीटिंग में रेपो रेट में 0.50% इजाफा किया है। इससे रेपो रेट 4.40% से बढ़कर 4.90% हो गई थी। अगस्त में अगर 0.50% की बढ़ोतरी होती है तो ये 5.40% पर पहुंच जाएगी।
RBI रेपो रेट क्यों बढ़ाता या घटाता है?
RBI के पास रेपो रेट के रूप में महंगाई से लड़ने का एक शक्तिशाली टूल है। जब महंगाई बहुत ज्यादा होती है तो, RBI रेपो रेट बढ़ाकर इकोनॉमी में मनी फ्लो को कम करने की कोशिश करता है। रेपो रेट ज्यादा होगा तो बैंकों को RBI से मिलेने वाला कर्ज महंगा होगा। बदले में बैंक अपने ग्राहकों के लिए लोन महंगा कर देंगे। इससे इकोनॉमी में मनी फ्लो कम होगा। मनी फ्लो कम होगा तो डिमांड में कमी आएगी और महंगाई घटेगी।
इसी तरह जब इकोनॉमी बुरे दौर से गुजरती है तो रिकवरी के लिए मनी फ्लो बढ़ाने की जरूरत पड़ती है। ऐसे में RBI रेपो रेट कम कर देता है। इससे बैंकों को RBI से मिलने वाला कर्ज सस्ता हो जाता है और ग्राहकों को भी सस्ती दर पर लोन मिलता है। इस उदाहरण से समझते है। कोरोना काल में जब इकोनॉमिक एक्टिविटी ठप हो गई थी तो डिमांड में कमी आई थी। ऐसे में RBI ने ब्याज दरों को कम करके इकोनॉमी में मनी फ्लो को बढ़ाया था।
रिवर्स रेपो रेट के बढ़ने-घटने से क्या होता है?
रिवर्स रेपो रेट उस दर को कहते है जिस दर पर बैंकों को RBI पैसा रखने पर ब्याज देता है। जब RBI को मार्केट से लिक्विडिटी को कम करना होता है तो वो रिवर्स रेपो रेट में इजाफा करता है। RBI के पास अपनी होल्डिंग के लिए ब्याज प्राप्त करके बैंक इसका फायदा उठाते हैं। इकोनॉमी में हाई इंफ्लेशन के दौरान RBI रिवर्स रेपो रेट बढ़ाता है। इससे बैंकों के पास ग्राहकों को लोन देने के लिए फंड कम हो जाता है।
प्राइस राइज टॉलरेंस लेवल से बहुत आगे
जून की पॉलिसी के दौरान, RBI गवर्नर ने कहा था कि प्राइस राइज टॉलरेंस लेवल से बहुत आगे है। हालांकि, उन्होंने हाल ही में अपने एक बयान में कहा था कि वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में महंगाई कम होगी। दास ने कहा था, मौजूदा समय में सप्लाई का आउटलुक काफी बेहतर नजर आ रहा है। सभी इंडिकेटर्स 2022-23 की दूसरी छमाही में अर्थव्यवस्था की रिकवरी के संकेत दे रहे हैं।
जानिए महंगाई के आंकड़े क्या कहते हैं?
1. जून में भारत की रिटेल महंगाई 7.01%
पिछले महीने की शुरुआत में जारी सरकारी आंकड़ों के अनुसार, जून में भारत की रिटेल महंगाई 7.01% हो गई। एक साल पहले की समान अवधि में ये 6.26% थी। यह लगातार छठा महीना था जब महंगाई केंद्रीय बैंक के 2%-6% के टॉलरेंस बैंड से ऊपर रही थी।
2. खाद्य महंगाई दर 7.75% रही थी
खाद्य महंगाई दर जून में 7.75% रही जो मई में 7.97% रही थी। अप्रैल में यह 8.38% थी। सब्जियों की महंगाई जून में घटकर 17.37% हो गई जो मई में 18.26% थी। फ्यूल और लाइट की महंगाई जून में बढ़कर 10.39% हो गई जो मई में 9.54% थी।
महंगाई कैसे प्रभावित करती है?
महंगाई का सीधा संबंध पर्चेजिंग पावर से है। उदाहरण के लिए, यदि महंगाई दर 7% है, तो अर्जित किए गए 100 रुपए का मूल्य सिर्फ 93 रुपए होगा। इसलिए, महंगाई को देखते हुए ही निवेश करना चाहिए। नहीं तो आपके पैसे की वैल्यू कम हो जाएगी।
अमेरिका में ब्याज दरों में 0.75% का इजाफा
अमेरिकी केंद्रीय बैंक US फेडरल रिजर्व ने हाल ही में ब्याज दरों में 0.75% का इजाफा किया था। US फेड ने महंगाई पर काबू पाने के लिए लगातार दूसरी बार अपनी पॉलिसी को सख्त करते हुए ब्याज दरों में इजाफा किया था। अमेरिका में अब ब्याज दरें बढ़कर 2.50% तक हो गई हैं। इससे पहले, जून 2022 में भी फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरों में 0.75% का इजाफा किया था।
महंगाई दर 1980 के बाद से सबसे ज्यादा
अमेरिका में महंगाई दर 1980 के बाद से सबसे ज्यादा है। यहां जून में महंगाई 9.1% पर पहुंच गई। इस इजाफे के बाद अमेरिका में मंदी की आने की आशंका जताई जा रही है। हालांकि, फेडरल रिजर्व के चेयरमैन जेरोम पॉवेल ने फिलहाल आर्थिक सुस्ती की आशंका से इनकार किया है। US फेड ने साफ तौर पर कहा है कि महंगाई काबू में नहीं आने पर ब्याज दरों में फिर इजाफा किया जा सकता है। केंद्रीय बैंक महंगाई को 2% तक लाना चाहता है।
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