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लखनऊ/अमेठी ।। अमेठी के आलीशान भूपति पैलेस में दाखिले होने के पहले दो इमारतें पड़ती हैं। बाएं हाथ वाली इमारत में लोहे की छड़ के पिंजरे वाले छज्जे हैं। इसमें शेर, चीते और तेंदुए रखे जाते थे। दाईं तरफ़ एक लंबी इमारत में अस्तबल हुआ करता था जिसमें अरबी नस्ल के घोड़े रहते थे।

कई सौ साल पुराने महल के बाहर इन दोनों इमारतों में अब शांति है। ख़तरनाक जानवर अब नहीं रहते। पिंजरे बरसों से सूने पड़े हैं। महल के भीतर शांति नदारद है क्योंकि दो तरफ़ से ‘चिंघाड़’ जारी हैं।

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भूपति महल के वारिस और पूर्व ‘महाराज’ संजय सिंह की दो रानियों ने एक दूसरे के ख़िलाफ़ ताल ठोक ली है। मामला सिर्फ़ जायदाद तक सीमित नहीं है। ‘प्रजा की वफ़ादारी’, राजनीति के अलावा ‘असल बीवी’ होने का हक़ भी साख पर है। उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव चल रहे हैं और 27 फ़रवरी को अमेठी की सीट के लिए मतदान होना है। भूपति भवन से रोज़ सुबह दो प्रत्याशी अपने-अपने प्रचार के लिए निकलते हैं।

‘रानी’ गरिमा सिंह, बेटे अनंत विक्रम और दो बेटियों के साथ भाजपा के झंडे तले।
‘रानी’ अमिता सिंह कांग्रेस के झंडे वाली ब्लैक एसयूवी में निकलती हैं, पति ‘महाराज’ संजय सिंह के साथ।
अमेठी के एक ग्राम प्रधान के घर पर हीरे-जवाहरातों से लैस गरिमा सिंह से मुलाक़ात होती है।

वे जिधर देख भर लेती हैं, जनता या महिलाएं भावुक हो जाती हैं।

“हमार परसवा पकड्यो बहनी”, सुन कर समझ में आया कि अवधी भाषा का भी ज्ञान रखतीं हैं गरिमा जिन्हें ”20 साल पहले तलाक़ देने का दावा संजय सिंह का है।”

गरिमा सिंह इसे दरकिनार कर बोलीं, “मेरा घर भूपति भवन है। उस घर से एक ही प्रत्याशी है, मैं, मेरे पति संजय सिंह ही हैं। मैं चुनाव में मोदी जी की सभी स्कीमें लोगों तक पहुंचा रहीं हूं।”

गरिमा के अगल-बगल उनकी दो बेटियां हैं जो इस बात पर ‘नज़र रखतीं हैं’ कि ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक ये बात पहुंचे कि ‘उनकी माँ को न्याय भी चाहिए।”

इस सब से कई किलोमीटर दूर, कुछ घंटे बाद, अपने चुनाव कार्यालय में अमिता सिंह दाखिल होती हैं। हम तीन वर्ष बाद मिले हैं तो पहला सवाल यही कि, “हाउ हैव यू बीन? बीन सो लॉन्ग।”

इतने में सामने खड़े व्यक्ति को ‘रानी’ से नसीहत मिलती है, “यही खड़ा रहियो तौ प्रचार पर कौन जाइ?” लगता है अमिता सिंह भी अवधी सीख चुकीं हैं। कांग्रेस की तरफ से कई दफ़ा विधायक रह चुकीं अमिता पिछली हार से आहत भी हैं।

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