Up Kiran, Digital Desk: क्या सार्वजनिक मंच पर धर्म और ग्रंथों को लेकर की गई टिप्पणी किसी कानूनी विवाद को जन्म दे सकती है? उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य इसी सवाल के केंद्र में आ गए हैं। वाराणसी के कैंट थाने में उनके खिलाफ मामला दर्ज किया गया है, जिसमें तुलसीदास जी और रामचरितमानस पर कथित आपत्तिजनक टिप्पणी का आरोप है।
अदालत के आदेश पर दर्ज हुआ मामला
इस मामले की शुरुआत अधिवक्ता अशोक कुमार सिंह की याचिका से हुई, जिसे 04 अगस्त को एमपी-एमएलए कोर्ट के अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट नीरज कुमार पाठक ने स्वीकार किया। अदालत ने कैंट थाने को आदेश दिया कि मामले की जांच कर रिपोर्ट दर्ज की जाए।
पुलिस ने बताया कि अदालत के निर्देशानुसार FIR दर्ज कर ली गई है और जांच प्रक्रिया शुरू हो गई है।
कब और कहां दिया था विवादित बयान?
याचिकाकर्ता का दावा है कि जनवरी 2023 में, स्वामी प्रसाद मौर्य ने एक प्रतिष्ठित समाचार चैनल को दिए इंटरव्यू में तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस पर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी। याचिका में कहा गया है कि मौर्य के बयान ने हिंदू समाज की धार्मिक भावनाओं को गहरा आघात पहुंचाया।
इस इंटरव्यू का वीडियो और ट्रांसक्रिप्ट सबूत के रूप में अदालत में पेश किए गए हैं। इसी आधार पर याचिकाकर्ता ने कानूनी कार्रवाई की मांग की थी।
धार्मिक भावनाएं और राजनीति की टकराहट
स्वामी प्रसाद मौर्य पहले भी अपने विवादित बयानों के लिए चर्चा में रहे हैं। लेकिन इस बार मामला सीधे धार्मिक ग्रंथ और आस्था से जुड़ा है, जिससे विवाद और गंभीर हो गया है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ऐसे मुद्दे न केवल धार्मिक ध्रुवीकरण को जन्म देते हैं, बल्कि सामाजिक तनाव भी बढ़ाते हैं।
जांच जारी, कानून तय करेगा अगला कदम
फिलहाल, पुलिस ने जांच शुरू कर दी है और बयान के ऑडियो-वीडियो साक्ष्य की जांच की जा रही है। अगर जांच में आरोप सही पाए जाते हैं, तो स्वामी प्रसाद मौर्य को कानूनी प्रक्रिया का सामना करना पड़ सकता है।
वहीं दूसरी ओर, मौर्य खेमे का कहना है कि यह राजनीतिक साजिश है और बयान को गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया है।

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