Up Kiran, Digital Desk: एक समय था, जब भारत और इज़रायल ने मिलकर पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम को हमेशा के लिए खत्म करने की एक बेहद साहसी और गुप्त योजना बनाई थी. अमेरिका की खुफिया एजेंसी CIA के एक पूर्व अधिकारी ने इस बात की पुष्टि की है कि 1980 के दशक की शुरुआत में दोनों देशों ने पाकिस्तान के कहूटा परमाणु संयंत्र पर हवाई हमला करने का प्लान तैयार कर लिया था, लेकिन आखिरी समय में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसे मंजूरी देने से इनकार कर दिया.
सीआईए के पूर्व अधिकारी रिचर्ड बार्लो ने इस लंबे समय से चर्चा में रही घटना पर मुहर लगाते हुए कहा, “यह शर्म की बात है कि इंदिरा (गांधी) ने इसे मंजूरी नहीं दी; इससे बहुत सारी समस्याओं का समाधान हो जाता.” उनका यह खुलासा दक्षिण एशिया के परमाणु इतिहास के उस अनछुए पन्ने को खोलता है, जो अगर हकीकत में बदल जाता तो आज इस क्षेत्र का नक्शा कुछ और होता.
क्या थी यह खुफिया योजना?
रिपोर्ट्स के मुताबिक, यह योजना 1981 में इराक के ओसिराक परमाणु रिएक्टर पर इज़रायल के सफल हवाई हमले से प्रेरित थी इज़रायल को इस बात की गहरी चिंता थी कि पाकिस्तान एक इस्लामिक बमबना रहा है, जो उसके लिए एक बड़ा खतरा बन सकता था
इस गुप्त मिशन के तहत, यह तय हुआ था
इज़रायली F-16 और F-15 लड़ाकू विमान भारत के जामनगर या उधमपुर जैसे एयरबेस से उड़ान भरते.
भारतीय वायुसेना के जगुआर विमान इन लड़ाकू विमानों को ऑपरेशन में मदद करते और हवा में ही ईंधन भरने (रिफ्यूलिंग) की सुविधा देते
इन विमानों का लक्ष्य पाकिस्तान के कहूटा में स्थित यूरेनियम संवर्धन संयंत्र को पूरी तरह से तबाह करना था, इससे पहले कि वह परमाणु हथियार बनाने में सक्षम हो पाता
आखिर क्यों इंदिरा गांधी ने खींच लिए थे अपने कदम?
रिचर्ड बार्लो और अन्य रिपोर्ट्स के अनुसार, शुरुआती सहमति के बावजूद इंदिरा गांधी ने इस बेहद जोखिम भरे मिशन को अंतिम मंजूरी नहीं दी. इसके पीछे कई बड़ी भू-राजनीतिक वजहें थींअमेरिका का भारी दबाव उस वक्त सोवियत-अफगान युद्ध चल रहा था और पाकिस्तान, अमेरिका का एक महत्वपूर्ण सहयोगी था. अमेरिका अफगान मुजाहिदीन को पाकिस्तान के रास्ते ही हथियार और मदद पहुंचा रहा था.ऐसा कोई भी हमला अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन को नाराज़ कर देता और अफगानिस्तान में चल रहे उनके अभियान को खतरे में डाल सकता था.
पूर्ण युद्ध का खतरा: इस हमले का सीधा मतलब पाकिस्तान के साथ एक बड़े और विनाशकारी युद्ध की शुरुआत हो सकता था, जिसका खामियाजा सबसे ज्यादा भारत को भुगतना पड़ता.
खुफिया जानकारी का लीक होना: कुछ रिपोर्ट्स यह भी बताती हैं कि सीआईए ने ही इस संभावित हमले की भनक पाकिस्तान के जनरल जिया-उल-हक को दे दी थी, जिसके बाद इस्लामाबाद ने कहूटा के आसपास अपनी सुरक्षा कई गुना बढ़ा दी थी
पाकिस्तान की जवाबी धमकी: पाकिस्तान परमाणु ऊर्जा आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष ने वियना में भारत के डॉ. राजा रमन्ना को चेतावनी दी थी कि अगर कहूटा पर हमला हुआ, तो पाकिस्तान भारत के ट्रॉम्बे परमाणु ठिकाने पर जवाबी हमला करेगा.
'मेरी जिंदगी बर्बाद हो गई'
रिचर्ड बार्लो वही अधिकारी हैं जिन्होंने 1980 के दशक में पाकिस्तान के अवैध परमाणु नेटवर्क का पर्दाफाश किया था. उन्होंने बताया कि सच बोलने की उन्हें भारी कीमत चुकानी पड़ी बार्लो के अनुसार, अमेरिकी सरकार पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम के बारे में सब कुछ जानती थी, लेकिन सोवियत संघ से लड़ाई के चलते जानबूझकर आंखें मूंदे हुए थी. जब बार्लो ने इस धोखेधड़ी के खिलाफ आवाज उठाई, तो उनकी जिंदगी बर्बाद कर दी गई.
यह खुलासा इस बात को फिर से रेखांकित करता है कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति और राष्ट्रीय सुरक्षा के फैसले कितने जटिल और दूरगामी परिणामों वाले होते हैं.
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