Up Kiran, Digital Desk: फाइटर जेट्स के इंजन दुनिया की सबसे उन्नत और जटिल तकनीकों में गिने जाते हैं। इन्हें खासतौर पर आसमान में दुश्मन पर हमला करने या रक्षा करने के लिए डिजाइन किया जाता है। सामान्य कार या बाइक में इंजन की क्षमता को सीसी (क्यूबिक सेंटीमीटर) से मापा जाता है, जो ईंधन जलाने की ताकत दिखाता है। लेकिन लड़ाकू विमानों के इंजन में यह पैमाना काम नहीं करता। फाइटर जेट्स की ताकत का असली मापदंड थ्रस्ट है।
थ्रस्ट का सिद्धांत काफी सरल है। इंजन सामने से हवा खींचता है, उसे दबाकर ईंधन के साथ मिलाता है और फिर जलाकर गर्म गैस पीछे की ओर फेंकता है। इस प्रक्रिया से जेट आगे की दिशा में धक्का पाता है।
यही धक्का थ्रस्ट कहलाता है और इसे किलोन्यूटन (kN) या पाउंड फोर्स (lbf) में मापा जाता है। उदाहरण के लिए, F-35 का Pratt & Whitney F135 इंजन 125 kN थ्रस्ट पैदा करता है और आफ्टरबर्नर लगाने पर 191 kN तक पहुंच जाता है। इसी तरह F-22 रैप्टर के दो इंजन मिलकर 312 kN थ्रस्ट देते हैं। इतनी शक्ति से जेट अपने वजन के बराबर ऊपर उठ सकता है। इंजन का आकार या आंतरिक क्षमता यहां मायने नहीं रखती, क्योंकि फाइटर जेट्स पूरी तरह थ्रस्ट पर निर्भर होते हैं।
फाइटर जेट्स का माइलेज कितना
अब सवाल आता है माइलेज का। फाइटर जेट्स कारों की तरह ईंधन बचाने के लिए नहीं बने होते। इनका ध्यान स्पीड और मैन्यूवर पर होता है, जो माच 2 तक पहुंच सकती है। यही वजह है कि इनका ईंधन खपत बेहद अधिक है। उदाहरण के लिए, F-16 एक घंटे में करीब 3,028 लीटर ईंधन जला देता है, जबकि F-35 की खपत लगभग 5,678 लीटर प्रति घंटा है।
यानी साफ है कि लड़ाकू विमान ताकत और गति के प्रतीक हैं, न कि ईंधन बचाने वाली मशीनें। इनके इंजन का असली पैमाना सिर्फ और सिर्फ थ्रस्ट है।
_1027733196_100x75.png)
_453697497_100x75.png)
_416784776_100x75.png)
 (1)_1901603173_100x75.jpg)
