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Up Kiran, Digital Desk: आज की दुनिया इतनी तेजी से बदल रही है जितनी पहले कभी नहीं बदली. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), ऑटोमेशन, और ग्लोबलाइजेशन हर इंडस्ट्री को हमारी आंखों के सामने बदल रहे हैं. पुरानी नौकरियां खत्म हो रही हैं और टेक्नोलॉजी, हेल्थकेयर, डेटा साइंस और क्रिएटिव फील्ड में नई तरह की नौकरियां पैदा हो रही हैं. इस बदलते माहौल में, कॉलेज की सिर्फ एक डिग्री काफी नहीं है. आज के छात्रों को स्किल्स, बदलते समय के साथ ढलने की क्षमता, और हिम्मत के एक ऐसे मिश्रण की जरूरत है जो उन्हें इस अनिश्चितता भरे दौर में सफल बना सके.

अब पढ़ाई सिर्फ नौकरी के लिए नहीं, जिंदगी के लिए है

इस बदलाव के केंद्र में एक ही विचार है - हमारी शिक्षा का मकसद अब छात्रों को सिर्फ नौकरी के लिए नहीं, बल्कि पूरी जिंदगी के लिए तैयार करना होना चाहिए. वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम से लेकर यूनेस्को तक, हर बड़ी रिपोर्ट एक ही बात कह रही है: भविष्य में काम करने के लिए विश्लेषणात्मक सोच (analytical thinking), रचनात्मकता (creativity), डिजिटल ज्ञान, और सहानुभूति (empathy) जैसी स्किल्स की जरूरत होगी. ये कोई एक्स्ट्रा स्किल्स नहीं, बल्कि जीने के लिए जरूरी हैं. रट्टा मारकर परीक्षा पास करने वाली पढ़ाई आज के छात्रों की जरूरतों को पूरा नहीं कर सकती, क्योंकि आज करियर का मतलब है लगातार कुछ नया सीखते रहना.

किताबें रटना नहीं, कुछ नया बनाना है जरूरी

इसे AI के एक उदाहरण से समझिए. जिन कॉलेजों में छात्रों को डिजिटल लैब और असली समस्याओं को सुलझाने वाले प्रोजेक्ट्स मिलते हैं, वे सिर्फ सीखने वाले नहीं रहते, बल्कि कुछ नया बनाने वाले (innovators) बन जाते हैं. जब छात्र टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करते हैं और असली दुनिया की समस्याओं पर टीमों में काम करते हैं, तो वे सिर्फ जानकारी रटना नहीं, बल्कि उस जानकारी का इस्तेमाल करके समाधान खोजना सीखते हैं.

अब यूनिवर्सिटियों को भी बदलना होगा. उन्हें अब सिर्फ 'ज्ञान की दुकान' बनकर नहीं रहना होगा, बल्कि ऐसे सेंटर बनना होगा जहां नए विचारों को जन्म दिया जाए. इंटर्नशिप, असली प्रोजेक्ट्स पर काम करना और इंडस्ट्री के लोगों से सीखना, किताबें रटने से कहीं ज़्यादा कीमती है.

सॉफ्ट स्किल्स ही असली 'सुपर स्किल्स' हैं

किताबी ज्ञान के अलावा, छात्रों को सॉफ्ट स्किल्स में माहिर बनाना भी उतना ही जरूरी है. लीडरशिप, बातचीत की कला (communication), टीम में काम करना, और अपनी भावनाओं को समझना - आज कोई भी कंपनी सिर्फ आपकी डिग्री नहीं देखती, वे आपमें इन गुणों को ढूंढते हैं. ये स्किल्स सिर्फ ऑफिस में ही नहीं, बल्कि निजी जिंदगी में भी आपको एक बेहतर इंसान बनाते हैं.

आंकड़े डराने वाले हैं, पर रास्ता भी है

अब आंकड़ों की बात करते हैं. वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के अनुसार, भारत के पास दुनिया की सबसे बड़ी युवा आबादी है, जो एक बहुत बड़ी ताकत है. लेकिन चिंता की बात यह है कि हमारे कुल कार्यबल में से सिर्फ 5% ही औपचारिक रूप से कुशल (formally skilled) हैं. यह दिखाता है कि हमारी पढ़ाई और नौकरियों की जरूरत के बीच एक बहुत बड़ी खाई है.

अगर हम अपने युवाओं को सही तकनीकी ज्ञान, सोचने की क्षमता और मानवीय स्किल्स से लैस कर दें, तो वे देश की तरक्की में एक ऐतिहासिक भूमिका निभा सकते हैं. इसके लिए हमारी यूनिवर्सिटियों को एक 'जीवित प्रयोगशाला' (living laboratory) बनना होगा - एक ऐसी जगह जहां प्रयोग करने, गलतियों से सीखने, और कुछ नया बनाने को प्रोत्साहित किया जाए और उसका जश्न मनाया जाए.

आज के अनिश्चित समय में, यूनिवर्सिटियों को सिर्फ शिक्षक नहीं, बल्कि छात्रों को सक्षम बनाने वाला (enabler) बनना होगा. टेक्नोलॉजी को अपनाकर, सहयोग को बढ़ावा देकर, और जीवन भर सीखने की आदत को सिलेबस का हिस्सा बनाकर ही हम छात्रों को आने वाली चुनौतियों के लिए तैयार कर सकते हैं. यह सिर्फ एक अच्छे करियर के लिए नहीं है, बल्कि इसलिए है ताकि वे समाज में एक सार्थक योगदान दे सकें और एक बेहतर भविष्य का निर्माण कर सकें.

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