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Up Kiran, Digital Desk: सूडान के संकटग्रस्त पश्चिमी इलाके में एक विनाशकारी भूस्खलन ने पूरे गांव को निगल लिया है। अनुमान है कि इस भयावह हादसे में एक हजार से ज्यादा लोगों की जान चली गई है। यह घटना देश के हालिया इतिहास की सबसे भीषण प्राकृतिक आपदाओं में गिनी जा रही है।
दारफुर के मर्राह पर्वत क्षेत्र में बसे तरासिन गांव में यह हादसा उस वक्त हुआ जब अगस्त के अंतिम दिनों में लगातार मूसलधार बारिश होती रही। सूडान लिबरेशन मूवमेंट-आर्मी (SLM-A) नामक एक स्थानीय विद्रोही संगठन ने सोमवार देर रात इस त्रासदी की पुष्टि की। संगठन ने कहा कि रविवार को आए भूस्खलन ने गांव को पूरी तरह तबाह कर दिया।
बयान के मुताबिक, "शुरुआती जानकारी यही बताती है कि गांव के लगभग सभी निवासी मारे जा चुके हैं। केवल एक व्यक्ति के जीवित बचने की खबर है।" अब यह इलाका मलबे में तब्दील हो चुका है और शवों को बाहर निकालने का कार्य बेहद कठिन साबित हो रहा है। इसीलिए संगठन ने संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय राहत एजेंसियों से तुरंत मदद की अपील की है।
वीडियो में दिखा मलबे का मैदान
सोशल मीडिया पर सामने आए कुछ वीडियो क्लिप्स में भूस्खलन से तबाह हुआ इलाका साफ देखा जा सकता है। जहां कभी घर थे, वहां अब सिर्फ मिट्टी और चट्टानों का ढेर है। कुछ लोग हाथों से मलबा हटाकर शवों को खोजने की कोशिश करते नजर आ रहे हैं।
भूस्खलन की मार के साथ-साथ गृहयुद्ध की आग
यह प्राकृतिक त्रासदी ऐसे समय में आई है जब सूडान पहले से ही एक भीषण गृहयुद्ध की चपेट में है। अप्रैल 2023 से देश की सेना और अर्द्धसैनिक बल रैपिड सपोर्ट फोर्सेज (RSF) के बीच चल रही जंग ने दारफुर और अन्य क्षेत्रों को पूरी तरह बर्बाद कर दिया है।
गृहयुद्ध की वजह से मर्राह पर्वत जैसे इलाकों तक राहत पहुंचाना बेहद मुश्किल हो गया है। संयुक्त राष्ट्र और राहत समूहों की टीमें यहां तक पहुंच नहीं पा रही हैं, जिससे हालात और गंभीर हो गए हैं।
दारफुर: जंग, भूख और मौत का इलाका
मर्राह पर्वत क्षेत्र में सक्रिय SLM-A जैसे विद्रोही संगठन आम तौर पर तटस्थ रहने की कोशिश करते हैं, लेकिन युद्ध के कारण पूरा इलाका बारूद के ढेर में तब्दील हो चुका है। यह पहाड़ी क्षेत्र, जो अल-फशर शहर से करीब 160 किलोमीटर दूर है, सेना और RSF के बीच हुई कई भीषण लड़ाइयों का गवाह रहा है।
संघर्ष की वजह से अब तक 40,000 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि 1.4 करोड़ लोग अपने घरों से बेघर हो चुके हैं। कई क्षेत्रों में हालात इतने बदतर हैं कि लोग घास और पत्ते खाकर जान बचाने पर मजबूर हो गए हैं।
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