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Up Kiran, Digital Desk: क्या आपने कभी सोचा है कि जब कोई अपना क्रिटिकल केयर (Critical Care) में होता है, यानी जब वह ICU में ज़िंदगी और मौत के बीच जूझ रहा होता है, तो उसके लिए सबसे बड़ी चीज़ क्या होती है? हम आमतौर पर दवाओं, मशीनों और बेहतरीन डॉक्टरों की बात करते हैं, जो बहुत ज़रूरी भी है. लेकिन अब एक डॉक्टर ने एक बहुत ही मार्मिक और महत्वपूर्ण बात कही है, जो शायद हमारी सोच को बदल दे. उन्होंने ज़ोर दिया है कि हमें गंभीर रूप से बीमार मरीज़ों (Critical Care Patients) के साथ फिर से 'इंसानी रिश्ता' और 'आपसी बातचीत' (Human Link Communications) बनानी चाहिए. उनका कहना है कि यह सिर्फ उनकी शारीरिक रिकवरी के लिए ही नहीं, बल्कि उनकी मानसिक शांति और डिग्निटी (गरिमा) के लिए भी बेहद अहम है.

आईसीयू में अकेलापन: मरीजों का मानसिक दर्द!

सोचिए, एक मरीज़ जो होश में है लेकिन मशीन से जुड़ा हुआ है, या आधा-अधूरा होश में है. वह एक ऐसी जगह पर है जहां मशीनें शोर कर रही हैं, डॉक्टर्स और नर्स जल्दी-जल्दी आते-जाते हैं, और हर तरफ दवाइयों की गंध है. ऐसे में उस मरीज़ को कितना अकेलापन और डर महसूस होता होगा? कई बार मरीज़ अपने मन की बात कह भी नहीं पाते. यहीं पर आती है 'इंसानी रिश्ते' की अहमियत:

  1. डर और चिंता कम करना: मरीज़ जब जानता है कि उसके अपने पास हैं, उससे बात कर रहे हैं, तो उसका डर और चिंता कम होती है. उन्हें सुरक्षा का एहसास होता है, जो इलाज में बहुत मदद करता है.
  2. ठीक होने में मदद: वैज्ञानिक तौर पर भी यह साबित हो चुका है कि जब मरीज़ मानसिक रूप से शांत और सकारात्मक होता है, तो उसका शरीर बीमारियों से बेहतर तरीके से लड़ पाता है. इंसानी जुड़ाव उन्हें अंदर से मजबूत बनाता है.
  3. गरिमा और सम्मान: हर इंसान को, चाहे वो कितना भी बीमार क्यों न हो, सम्मान के साथ जीने का हक है. बातचीत और उनके दर्द को समझने से उन्हें अपनी गरिमा महसूस होती है. उन्हें ये नहीं लगता कि वे बस एक 'मरीज़' हैं, बल्कि 'कोई अपना' हैं.
  4. भावनात्मक सहारा (Emotional Support): गंभीर बीमारियों में भावनात्मक सहारे की बहुत ज़रूरत होती है. अपनों की बातें, स्पर्श, या सिर्फ पास होने का एहसास उन्हें लड़ने की ताकत देता है.

तो कैसे करें यह 'इंसानी जुड़ाव'?

डॉक्टर ने सलाह दी है कि ऐसा करने के कई तरीके हो सकते हैं:

  1. कम ही सही, लेकिन लगातार बात करें: मरीज़ से थोड़ी-थोड़ी देर में बात करते रहें, उन्हें बताएं कि क्या चल रहा है. ज़रूरी नहीं कि वे जवाब दें, लेकिन वे महसूस कर सकते हैं.
  2. उन्हें सुनेंसंपत्ति: अगर वे कुछ कहना चाहते हैं, तो धैर्य से सुनें. उनकी बात को काटें नहीं, चाहे वो कितनी भी धीमी या अधूरी क्यों न हो.
  3. प्यार भरा स्पर्श: हल्का-सा हाथ पकड़ना, उनके माथे पर प्यार से हाथ फेरना – ये छोटी चीज़ें भी उन्हें बहुत ताकत दे सकती हैं.
  4. उनकी इच्छाओं का सम्मान: अगर संभव हो तो, उनकी छोटी-मोटी इच्छाओं को पूछें और पूरा करने की कोशिश करें (जैसे कौन सा गाना सुनना पसंद करते हैं).
  5. पारदर्शिता बनाए रखें: उनके इलाज और प्रगति के बारे में उनसे और उनके परिवार से स्पष्ट और ईमानदारी से बात करें.

ये सिर्फ एक 'चिकित्सा दृष्टिकोण' नहीं है, यह एक 'मानवीय दृष्टिकोण' है. आईसीयू में पड़ा मरीज़, जो हर पल दर्द से गुजर रहा है, उसके लिए सिर्फ दवा नहीं, बल्कि आपके प्यार भरे बोल और मानवीय स्पर्श ही सबसे बड़ी उम्मीद की किरण बन सकते हैं.