
Up Kiran,Digitl Desk: दिवाली का त्योहार नज़दीक आते ही पटाखों और प्रदूषण पर बहस तेज़ हो जाती है. इस साल सुप्रीम कोर्ट ने ग्रीन पटाखों (कम प्रदूषण वाले पटाखे) को चलाने की अनुमति दे दी है. अदालत ने लोगों के जश्न मनाने के अधिकार का सम्मान किया है, लेकिन पर्यावरण विशेषज्ञों (Environmental Experts) ने इस फ़ैसले पर चिंता जताई है. उनका कहना है कि अगर नियमों का सख़्ती से पालन नहीं किया गया और लोगों को जागरूक नहीं किया गया तो दिल्ली की पहले से ज़हरीली हवा और ख़राब हो सकती है.
क्या सिर्फ़ 'ग्रीन पटाखे' ही हैं समाधान: विशेषज्ञों का मानना है कि प्रदूषण सिर्फ़ दिवाली के समय की समस्या नहीं, बल्कि यह पूरे साल की दिक़्क़त है.
अधूरी तैयारी, जंग कैसे जीतेंगे?: पर्यावरण कार्यकर्ता अमित गुप्ता ने इस फ़ैसले को "व्यावहारिक" बताया है, लेकिन उन्होंने प्रदूषण से लड़ने वाली सरकारी एजेंसियों की कमियों की ओर भी इशारा किया है. उन्होंने बताया कि वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) में 35 प्रतिशत कर्मचारियों की कमी है. इसी तरह दिल्ली और उत्तर प्रदेश के प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड भी स्टाफ़ की कमी से जूझ रहे हैं. गुप्ता कहते हैं, "जब प्रदूषण से लड़ने वाली संस्थाएँ ही कमज़ोर होंगी तो ज़मीनी स्तर पर काम कैसे होगा?"
सर्टिफ़िकेट ज़रूरी, पर काफ़ी नहीं: केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के पूर्व अधिकारी दीपांकर साहा के मुताबिक़, सर्टिफाइड ग्रीन पटाखे पारंपरिक ज़हरीले पटाखों से बेहतर विकल्प हैं. लेकिन सिर्फ़ सर्टिफ़िकेशन से काम नहीं चलेगा. उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि "लोगों को बड़े पैमाने पर जागरूक करना होगा ताकि बाज़ार में सिर्फ़ सर्टिफाइड पटाखे ही बिकें." साहा ने यह भी कहा कि हमने नियम तो बना दिए, लेकिन गैर-क़ानूनी पटाखों के प्रोडक्शन और इम्पोर्ट को रोकने में नाकाम रहे हैं.
कहीं फ़ायदा उलटा न पड़ जाए?: कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि इस फ़ैसले का असर उलटा भी हो सकता है. पर्यावरणविद सुनील दहिया का कहना है कि "ग्रीन पटाखों को क़ानूनी मान्यता देने का मतलब है कि आप त्योहार के दौरान ज़्यादा धुआँ फैलाने की इजाज़त दे रहे हैं." उन्होंने समझाया कि भले ही ग्रीन पटाखे 30 फ़ीसदी कम प्रदूषण करते हैं, लेकिन दिवाली के दौरान जब बड़ी तादाद में ये जलाए जाएंगे तो कुल मिलाकर प्रदूषण बढ़ेगा ही.
विशेषज्ञों का मानना है कि इस साल दिवाली नवंबर की बजाय अक्टूबर में है, जिससे थोड़ी राहत मिल सकती है. तेज़ हवाएँ धुएँ को फैलने में मदद कर सकती हैं. लेकिन असली चुनौती नियमों को लागू करवाने और लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करने की होगी.