राजधानी दिल्ली में हुई इंडिया गठबंधन की बैठक के बाद से ही नीतीश कुमार के गुस्सा होने और अखिलेश के आहत होने की खबरें गर्म हैं। सवाल यह है कि उत्तर प्रदेश और बिहार जहां से लोकसभा की लगभग एक तिहाई सीटें आती हैं, उन 120 सीटों पर इंडिया गठबंधन की रणनीति कुछ है भी या फिर नहीं? और अगर है तो वह क्या है? सबसे ज्यादा मुश्किलें कांग्रेस के लिए खड़ी होती हुई दिखाई दे रही है।
ऐसे में सबसे पहले बात करते हैं नीतीश कुमार की कि आखिर वे कैसे गठबंधन के लिए परेशानी का सबब बन रहे हैं। 19 दिसंबर को विपक्षी गठबंधन की बैठक से भी उनके गुस्से में आने की खबर गरम है। बैठक के दौरान डीएमके के नेता ने जब उनके भाषण का अंग्रेजी अनुवाद मांगा था तो भी नीतीश बिगड़ गए थे।
उन्होंने जो प्रतिक्रिया दी थी, उसका मतलब यही था कि गठबंधन को अपने अंग्रेजी जदा होने से बाहर आना पड़ेगा, वरना आगे की राह मुश्किल होगी। नीतीश अपना नाम प्रधानमंत्री या समन्वयक के तौर पर नहीं देखकर जाहिर तौर पर निराश हुए ही थे। आखिर पिछले एक साल से वे घूम घूमकर बीजेपी के विरूद्ध माहौल बना रहे थे। उनके ही प्रयासों से गठबंधन बना और जब पीएम कैंडिडेट का नाम घोषित हुआ तो ममता बनर्जी ने खड़गे का नाम आगे कर दिया।
नीतीश बैठक से उठकर न केवल बिहार वापस आ गए, बल्कि 29 दिसंबर को जेडीयू की कार्यकारिणी की बैठक भी आहूत कर दी, जिसमें वे क्या करने वाले हैं, किसी को नहीं पता।
यूपी की बात करें तो कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय फिलहाल यूपी जोड़ो यात्रा पर हैं। ये पूरी यात्रा यूपी के उन्हीं जिलों से होकर गुजरेगी जो मुस्लिम बहुल है। ये कोई रहस्य नहीं है कि हालिया 5 प्रदेशों के इलेक्शन ने ये साबित कर दिया है कि कांग्रेस की ओर मुसलमान वोट बैंक लौट रहा है और वे क्षेत्रीय दलों को नकार रहे हैं।
पश्चिमी यूपी में भी मुसलमान सपा, बसपा, रालोद को छोड़कर कांग्रेस की तरफ लौटने लगे हैं और इसका आभास कांग्रेस को भी है और सपा को भी। अखिलेश ने भले ही बहाना फिलहाल बसपा के गठबंधन में शामिल होने को बनाया है, किंतु वे कांग्रेस से भी उतने ही सावधान हैं। इसलिए बार बार वे कहते रहे हैं कि यूपी में सीटों का बंटवारा तो वही करेंगे। गठबंधन की सबसे बड़ी मुसीबत भी यही है।
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