पवन सिंह
किसी दुश्मन देश की कमर तोड़नी हो तो दो काम करना चाहिए पहला यह कि उसकी अर्थव्यवस्था को चिटका दें और दूसरा उस देश के अंदर की समरसता को कमजोर कर दें…वह देश घुटनों पर होगा। चीन की ताकत उसकी सशक्त अर्थव्यवस्था रही है और विगत दस सालों में आर्थिक विकास के मद में बौराया चीन अपने हर पड़ोसी को धमका रहा है और पूरे साउथ चाइना पर एकाधिकार चाहता है। उसकी इस मंशा का असल रोड़ा भारत है। भारत से चीन के व्यापारिक रिश्ते ऐसे हैं कि उसने आयात-निर्यात में ही असुंतलन नहीं रखा बल्कि तमाम भारतीय उद्योगों को खा गया।
हमारे देश के 20 जवानों की शहादत पर चंद दो दिनों से कुछ व्यापारियों और कुछ लोगों का राष्ट्रवाद उबालें मार रहा है। घर में पड़े चार खराब चाइनीज़ फोन सड़क पर पटक कर चीन को उसकी औकात बता रहा है। चेहरा “बमबम चैनलों” पर चमक गया और हो गया विरोध। संक्षिप्त में कुछ सच्चाई से अवगत कराने की जरूरत है। चीन ने सबसे बड़ा झटका भारतीय मोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक उद्योग को दिया है। मुझे तो यह कहना चाहिए कि उसने तबाह कर दिया है। मुझे यह कहने में किंचित्मात्र भी गुरेज नहीं है कि हमारा राष्ट्रीय नेतृत्व इस पूरी तबाही को नंगी आंखों से देखता रहा है।
मज़दूर भाई गांव आ चुके अब फौजी भाई लाये जायेंगे!
इस कंपनी ने कुछ साल पहले गूगल से उसका ब्रांड मोटोरोला खरीद लिया था। इसके बाद ओप्पो आती है और ग्रेटर नोएडा में अपना प्लांट लगाती है। फिर वीवो आती है और तमिलनाडु में प्लांट लगा देती है। इसके बाद बैंगलूरू में अपना एक रिसर्च सेंटर खोल देती है। फिर जियोनी फरीदाबाद में, वन प्लस नोएडा में, कूलपैड औरंगाबाद में अपनी-अपनी फैक्ट्रियां लगा देती हैं। जोपो मोबाइल और दूरसंचार के उपकरण बनाने वाली कंपनी ZTE गुड़गांव में प्लांट लगा देती हैं।
आज चीन की इन कंपनियों का भारत के विशालकाय मोबाइल बाजार के 80 % हिस्से पर कब्जा है। चीन सरकार एक सोची-समझी रणनीति के तहत इन कंपनियों को जबरदस्त पैकेज मुहैय्या कराती है ताकि उत्पाद भारतीय कंपनियों के मुकाबले सस्ते रहें। यह कंपनियां भारत आती हैं और फिल्मी दुनियां व क्रिकेट की हस्तियों से प्रचार करवा कर मार्केटिंग करवा कर पूरा बाजार हथिया लेती।
शहीद हुए जवानों का कर्जदार रहेगा देशः अमित शाह
चाइनीज खिलौनों की लागत इतनी कम है कि कोई भी भारतीय कम्पनी चीन की प्रतियोगिता का मुकाबला नहीं कर सकती। पिछले साल भारतीय खिलौनों के केवल 20% बाजार पर भारतीय कंपनियों का अधिकार था बाकी के 80% बाजार पर चीन और इटली का कब्ज़ा था। एसोचैम के एक अध्ययन के अनुसार पिछले 5 साल में 40% भारतीय खिलौना बनाने वाली कम्पनियां बंद हो चुकी है और 20 % बंद होने की कगार पर हैं।
चीन को 1126 करोड़ का झटका देने की तैयारी में हिंदुस्तान, बनाया ये धांसू प्लान
उत्तराखंड में इस तरह से किया जा रहा चीन का विरोध, जानने के बाद लगेगी चीनियों को मिर्ची
2015-16 के वित्त वर्ष में भारत का चीन को निर्यात $2,390 मिलियन था जो कि भारत के कुल निर्यात का केवल 3.59% था|दूसरी तरफ चीन की तरफ से भारत को निर्यात $14,704 मिलियन था,जो कि भारत के कुल आयात का 15% था |
भारत-चीन झड़प: घायल जवानों ने बताया हुआ क्या था!
भारत के इस इलाके में घुसने के फिराक में चीन, सेटेलाइट तस्वीरों से खुली पोल
अब एक अन्य तकनीकी पहलू पर आते हैं वह है WTO के नियम।‘डब्ल्यूटीओ के नियमों के अनुसार कोई भी देश आयात पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं लगा सकता। चाहे उस देश के साथ हमारे राजनयिक,क्षेत्रीय या सैन्य समस्याएं क्यों न हो….अब ऐसे में हमारा राष्ट्रीय स्वाभिमान और राष्ट्रीय नेतृत्व का कैरेक्टर सामने आता है। वह ऐसे कि भारत सरकार भारतीय उद्योगों का संरक्षण उसी तरह करें जैसे चीन करता है और हम भारतीयों का कर्त्तव्य बनता है कि हम अपने देश के ही उत्पाद खरीदें।…. लेकिन हमारे यहां ज्वार-भांटा टाइप का राष्ट्रवादी उबाल आया है और वह चैनलों की चूं-चांय में निपट जाता है।
चीन का एक और विश्वासघात, भारत क्यों अमेरिका, औऱ इजराइल जैसे देशों की मदद नहीं ले सकता
क्या मैं यह पूछ सकता हूं कि देश के जितने भी व्यापारी हैं उनकी दुकानों में वा गोदामों में जितना भी चाइनीज़ माल भरा है। वह उसे सड़क पर लाकर जला सकते हैं? …यकीन मानिए दो चार को छोड़कर कोई नहीं करेगा। घर में पड़े चार पुराने खराब मोबाइल सड़क पर पटक कर चैनलीय राष्ट्रवाद ऐसा ही होता है…..भारत के व्यापारी अगर चीन से माल मंगाना बंद कर दें और नागरिक खरीदना तो WTO के डब्लू चाचा भी कुछ नहीं कर सकते…. लेकिन यह होगा नहीं। शेष जो हो रहा है वह सामने है।