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हिंदू धर्म में पितृपक्ष (Pitru Paksha) का विशेष महत्व होता है। पितृपक्ष साल में एक बार 16 दिनों के लिए पड़ता है। इस दौरान कोई भी नया काम नहीं किया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, पितृपक्ष भाद्रपद मास की पूर्णिमा तिथि से प्रारंभ होकर आश्विन मास की अमावस्या तक रहता है। इस साल पितृपक्ष 10 सितंबर से लेकर 25 अक्टूबर तक रहेगा। हिंदू धर्म में पितरों को देवतुल्य माना जाता है। पितृपक्ष में पितरों के लिए तर्पण और श्राद्ध का विशेष महत्व है।

कहते हैं कि पितृपक्ष (Pitru Paksha) में पितर धरती पर विचरण करते हैं। ऐसे में उनेक परिजन पिंड दान, श्राद्ध और तर्पण करके उन्हें प्रसन्न करते हैं। इससे प्रसन्न होकत पितर उन्हें सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं लेकिन कई बार लोग अनजाने में पितृपक्ष में कुछ ऐसे काम कर देते हैं, जिनसे पितृदोष लगता है। आइये जानते हैं पितृपक्ष में किन बातों का विशेष ख्याल रखना चाहिए।

  • पुराणों में बताया गया है कि पितृपक्ष में शुभ और मांगलिक कार्य नहीं किये जाते हैं। इस दौरान किसी नए काम की शुरुआत या नए कपड़े भी नहीं खरीदे जाते हैं।
  • हिंदू धर्म में पितृपक्ष (Pitru Paksha को पितरों का समय मानते हैं। इस दौरान पुरुषों को बाल और दाढ़ी नहीं कटवाने की मनाही होती है।
  • पितृपक्ष में इत्र या परफ्यूम का इस्तेमाल भी नहीं करना चाहिए।
  • मान्यता है कि पितृपक्ष (Pitru Paksha के दौरान सात्विक भोजन ही ग्रहण करना चाहिए।
  • श्राद्ध करते समय लोहे का बर्तन का इस्तेमाल में नहीं लाना चाहिए। अन्य धातु से बनें बर्तन या पत्तल का इस्तेमाल कर सकते हैं।
  • पिंडदान करते समय ब्राह्मण को चटाई या लकड़ी के आसान में ही बैठाना चाहिए। लोहे के आसन का प्रयोग वर्जित है।
  • पितृपक्ष के आखिरी दिन यानी आश्विन माह की अमावस्या के दिन सभी भूले बिसरे पितरों का श्राद्ध करना चाहिए। कहते हैं ऐसा करने से पितृदोष समाप्त होता है और जीवन में खुशहाली आती है। (Pitru Paksha

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