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Up Kiran, Digital Desk: भारत की अंतरिक्ष प्रगति अब केवल वैज्ञानिकों या विशेषज्ञों की चर्चा का विषय नहीं रही अब यह आम जनता के जीवन पर भी असर डालने वाली दिशा में बढ़ रही है। इसरो (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन) के चेयरमैन वी. नारायणन ने हैदराबाद के उस्मानिया विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में अपने संबोधन के दौरान कुछ बड़े ऐलान किए जो आने वाले वर्षों में देश की तकनीकी और सामरिक क्षमता को नई ऊंचाइयों पर ले जाने वाले हैं।

40-मंज़िला ऊंचे रॉकेट से नए युग की शुरुआत

इसरो फिलहाल एक विशाल रॉकेट पर काम कर रहा है, जिसकी ऊंचाई किसी 40-मंज़िला इमारत के बराबर होगी और जो 75,000 किलोग्राम वज़न को लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) में स्थापित करने में सक्षम होगा। आज से कुछ दशक पहले डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम द्वारा बनाए गए पहले लॉन्चर की क्षमता महज़ 35 किलोग्राम थी। तब की तुलना में यह तकनीकी छलांग न केवल देश की वैज्ञानिक क्षमता को दर्शाती है, बल्कि यह भी संकेत देती है कि भारत वैश्विक अंतरिक्ष बाज़ार में मजबूत दावेदार बन चुका है।

आम लोगों तक पहुंचेगी तकनीक की पहुंच

नारायणन ने यह भी बताया कि इस साल इसरो कई प्रमुख मिशन लॉन्च करने जा रहा है, जिनमें नया नेविगेशन सैटेलाइट (NAVIC), एन1 रॉकेट और एक अमेरिकी कम्युनिकेशन सैटेलाइट (वज़न 6,500 किलोग्राम) का भारतीय रॉकेट के ज़रिए प्रक्षेपण शामिल है। इन मिशनों से संचार, नेविगेशन और इंटरनेट कनेक्टिविटी जैसी सेवाएं आम जनता के लिए और भी सुलभ और मज़बूत हो सकेंगी।

रक्षा और सामरिक ताकत को मिलेगा बढ़ावा

इसरो इस साल टेक्नोलॉजी डेमोंस्ट्रेशन सैटेलाइट (TDS) और GSAT-7R भी लॉन्च करने जा रहा है। यह नया सैन्य संचार उपग्रह भारतीय नौसेना के वर्तमान उपग्रह GSAT-7 ‘रुक्मिणी’ की जगह लेगा। ऐसे उपग्रहों की मदद से भारत की समुद्री सीमाओं की निगरानी और संचार व्यवस्था को और अधिक मज़बूती मिलेगी।

तीन गुना हो सकती है सैटेलाइट्स की संख्या

नारायणन ने यह भी बताया कि अभी पृथ्वी की कक्षा में भारत के 55 सक्रिय उपग्रह मौजूद हैं, और अगले 3-4 वर्षों में यह संख्या तीन गुना तक बढ़ सकती है। इससे न केवल राष्ट्रीय सुरक्षा और आपदा प्रबंधन जैसे क्षेत्रों को मदद मिलेगी, बल्कि मौसम पूर्वानुमान, कृषि, और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में भी तकनीकी सहयोग मिल सकेगा।

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