
प्रवासी मज़दूरों को उनके घर पहुंचाने के लिए कांग्रेस पार्टी और यूपी सरकार के बीच पिछले चार दिनों से जारी सियासी घमासान और प्रचंड होता जा रहा है। सीएम योगी के हठ के बाद कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने योगी सरकार के विरोध में लाइव प्रतिरोध का आह्वान किया है। दरअसल, प्रियंका गांधी के यूपी में सक्रिय होते ही योगी सरकार असहज होकर अपनी किरकिरी करा लेती है।
उल्लेखनीय है कि प्रियंका गांधी इससे पहले भी कई बार जनता के बुनियादी मुद्दों पर योगी सरकार को घेर चुकी हैं। हर बार सरकार की ओर से प्रियंका गांधी के ख़िलाफ़ कार्रवाई की गई, लेकिन बाद में सरकार उनकी मांगों को मानने पर विवश हुई। योगी सरकार प्रियंका गांधी को रोकने की जितनी ही कोशिश करती है, उसकी उतनी ही किरकिरी होती है।
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गत जुलाई माह में सोनभद्र के उभ्भा गांव में ज़मीन विवाद में दस लोगों की हत्या कर दी गई थी। दो दिन बाद प्रियंका गांधी उभ्भा गांव में पीड़ित परिवारों से मिलने जा रही थीं। पहले उन्हें वाराणसी और फिर मिर्ज़ापुर में रोक लिया गया। वह मिर्ज़ापुर के चुनार क़िले में दो दिन तक धरने पर बैठी रहीं। आख़िरकार सरकार ने उनकी पीड़ित परिवारों से मुलाक़ातभी कराई और बाद में मुआवजा भी दिया गया।
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इसी तरह सीएए विरोध के दौरान पूर्व पुलिस अधिकारी एसआर दारापुरी जेल में थे। प्रियंका गांधी उनके परिवार से मिलने जा रही थी, प्रशासन ने उनका रास्ता रोका तो वह पैदल ही चल पड़ी। इस मामले में भी योगी सरकार कि खूब किरकिरी हुई थी। इसी तरह पिछले साल फ़रवरी में पार्टी महासचिव बनने के बाद लखनऊ में प्रियंका गांधी के रोड शो के दिन राज्य सरकार ने अपने 22 महीने पूरे होने के उपलक्ष्य में सभी प्रमुख अख़बारों को पहले पन्ने पर पूरे पेज का विज्ञापन दिया था। राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक सरकार ने ऐसा प्रियंका गांधी को मिलने वाले कवरेज को रोकने के लिए किया था।
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राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि प्रियंका जनता के बुनियादी मुद्दों को उठाती हैं और संघर्ष के लिए तत्पर भी रहती हैं। उनकी बातों में अप्पील होती है। वहीं योगी सरकार का रवैया अपरिपक्व होता है। सीएम योगी की कार्यशैली में कहीं पर भी गंभीरता नजर नहीं आती। सरकार पहले किसी मुद्दे पर अड़ंगा लगाती है और जब उसकी किरकिरी शुरू हो जाती है तो तत्काल अपने कदम पीछे खींच लेती है।