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नई दिल्ली।। नोटबंदी(Demonetization) के एक साल होने पर बीजेपी द्वारा पोल-खोल कैम्पेन के नाम से कुछ VIDEO जारी किये गये हैं। ये वीडियो 8 नवंबर को एंटी-ब्लैकमनी-डे की थीम पर आधारित हैं। जारी वीडियो के माध्यम से भाजपा उन लोगों की ओर इशारा करना चाहती है जिनपर भाजपा के मुताबिक, नोटबंदी का सबसे तगड़ा असर पड़ा है।हालाँकि इस वीडियो को देखने के बाद कहानी कुछ और ही रंग ला रही है। बीजेपी की ओर से जारी इस वीडियो में एक महिला नेता को सबसे ज्यादा विचलित और आक्रोशित दिखाया गया है, उसकी हेयर-स्टाइल और चेहरे का संकेत बसपा सुप्रीमो मायावती से मिलता जुलता है।

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वीडियो में महिला नेता के पीछे किताबों की अलमारी और मेज पर दो हाथी हैं। इस महिला के चेहरे-मोहरे और तेवर में मायावती जैसी ही उग्रता है।जबकि भाषा संयम की सीमा से बाहर और दंभ से भरी हुई है। मायावती के बारे में ऐसे कथित चुटकुले और कहानियां राजनीतिक गलियारों में सुनने को मिलती रहती हैं। वीडियो में महिला नोटबंदी का गुस्से में विरोध करते हुए बोल रही है कि उसे अफसोस है कि उसके पास जो सैकड़ों करोड़ रुपये थे, वो सब नोटबंदी की भेंट चढ़ गये। यही बातें बसपा सुप्रीमो मायावती के बारे में नोटबंदी के बाद यूपी विधानसभा के चुनावों के परिपेक्ष्य में कहीं जा रही थीं।

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बीजेपी का यह वीडियो मायावती के विरोधियों को जरूर पसंद आएगा। खासकर सवर्णों में इसे एक जातीय जीत की तरह प्रसारित होते देखा जा सकेगा और लोग कहेंगे कि देखो, कैसे चित्त कर दिया इस दलित नेत्री को जो दौलत के दम पर राजनीति करती आ रही थी। लेकिन इसी वीडियो में एक जबर्दस्त अंतर्विरोध भी है कि वर्तमान में दलितों पर डोरा डालने में जुटी बीजेपी के जो नये-नये दलित नेता समर्थक बने हैं, उन्हें एक दलित नेता मायावती का इस तरह से उपहास करना नागवार गुज़र सकता है।

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यहाँ सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात ये है कि मायावती पर बीजेपी का इस तरह का ताज़ा हमला ऐसे समय में हो रहा है जब वो राजनीतिक रूप से सबसे कमज़ोर और हाशिये पर नज़र आ रही हैं।गौरतलब है कि अगड़ों को नोटबंदी की जो गहरी चोट लगी है, बीजेपी उसे जाति-संघर्ष में दलित पहचान वाली नेता के बड़े नुकसान के नेरेटिव में बदलने की कोशिश कर रही है। ये वही नेरेटिव है जिसका सुख उन गरीबों को मिल रहा था, जो नोटबंदी के बाद यह सोचकर ही खुश थे कि अमीरों का तो बहुत ज्यादा नुकसान हो गया।

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हालाँकि मायावती की गुजरात में बहुत प्रासंगिकता नहीं हैं और न ही गुजरात में दलितों की आबादी ही बहुत बड़ी और निर्णायक है। लेकिन यहाँ मोदी जी मायावती के चोट की कहानी सवर्णों को सुनाकर शायद कहना चाहते हैं कि उन्होंने किस तरह से मायावती को चोट पहुंचाकर, कितना बड़ा नुकसान कर दिया।बीजेपी को यह भी लगता है कि दलित-नेता की छवि का यह परिहास अगर विपक्षी पार्टियां चुनाव में मुद्दा बनाकर आगे बढ़ने की कोशिश करेंगी तो इससे जातीय ध्रुवीकरण को बल मिलेगा और इसका सबसे ज्यादा फायदा बीजेपी को ही मिलेगा। लेकिन यहाँ बीजेपी यह भूल रही है कि राजनीतिक विपक्ष के अतिरिक्त अगर अन्य तरीकों से दलितों के बीच यह वीडियो वायरल होता है तो भाजपा में आयी दलितों की नई आमद पार्टी के खिलाफ जा सकती है।

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